अदनान खान सलामतपुर रायसेन। एडिटर इन चीफ IND28.COM

मध्य प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल रायसेन जिले के सलामतपुर के पास स्थित पर्यटन स्थल बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध सतधारा पहुंचे। उन्होंने सतधारा के स्तूप देखे एवं यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारा। सतधारा घूमने आए पर्यटकों के साथ मंत्री पहलाद पटेल ने चर्चा की। वहीं मौजूद अधिकारी कर्मचारियों को दिशा निर्देश भी दिए।

भोपाल विदिशा मुख्यमार्ग से 5 किमी की दूरी पर स्तिथ हैं सतधारा के स्तूप-- सतधारा स्तूप की प्रसिद्धि और यहां सुविधाओं के नाम पर कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है। विडंबना यह है कि वह पूरातत्व विभाग सतधारा के स्तूपों का अच्छे से प्रचार-प्रसार नहीं कर रहा है। वहीं यूनेस्को द्वारा प्रदत राशि से किया गया निर्माण कार्य भी संतोषजनक नहीं है। वर्ष 99 में हुए इस जीणोद्धार के बाद जनवरी 2005 में यूनेस्को के पुरा-विशेषज्ञों के दल ने इस पर असंतुष्टि जताते हुए इस को तोड़कर दोबारा निर्माण करने के निर्देश दिए थे। एक विचित्र स्थिति यह भी है कि उक्त भूमि पहले वन विभाग के अधीन थी। काफी समय बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ट्रांसफर हुई है। यहां बिजली, संचार एवं अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। यहां आने के लिए करोडों रुपए की राशि का सड़क मार्ग भी नया बनाया गया था। लेकिन वह भी अब जगह-जगह से खराब हो चुका है। उसके बाद भी पर्यटक यहां आने में असमर्थ होते हैं। इसलिए सांची से अधिक सुंदर इस स्थान को ना तो प्रसिद्धि मिल पा रही है। और और ना ही पर्यटन की दृष्टि से कोई लाभ हो पा रहा है। पुरातत्व विभाग द्वारा प्रशासन को कई बार पत्र लिखे जाने के बावजूद भी यहां पर व्यवस्थाएं नहीं सुधरी है।

272-238 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने सतधारा में बनवाया था ईंटो का स्तूप--हलाली नदी के दाएं किनारे पहाड़ी पर स्थित बौद्ध स्मारक सताधारा की खोज ए कन्धिम ने की थी। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए स्तूप का निर्माण कराया था। इस स्थल पर छोटे-बड़े कुल 27 स्तूप, दो बौद्ध बिहार तथा एक चैत्य है। वर्ष 1989 में इस स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया। ईसा पूर्व 272-238 में सम्राट अशोक ने सांची स्तूप निर्माण के समय ही सतधारा में ईंटों का स्तूप बनवाया था। यहां मौजूद वैदिक स्तंभ में कमल पुष्प, आलेख सिंह, वेष्टित वृक्ष, मानवाकृति आदि अलंकरण सहित दानदाताओं के कई अभिलेख भी हैं। उत्खनन के दौरान बौद्ध सारिपुत्र तथा महागोपालन के अस्थि अवशेष मिले। यहां शैलाश्रय में बौद्ध का व्यक्ति चित्र, आठ स्तूप, बारह बिहार और एक मंदिर है। यह स्थान मौर्य काल में विकसित हुआ और गुप्त काल से इसकी उपेक्षा शुरू हुई।

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28.COM