हितग्राहियों को सरकारी आवास और निजी घर बनाने में छूट रहा पसीना
-घर बनाने में महंगाई बनी दीवार, रेत, लोहा, सीमेंट व ईंट के साथ मजदूरों के दाम बढ़े
वसीम कुरैशी सांची रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
लोगों के अपने सपनों का घर बनाना अब बड़ा मुश्किल होते जा रहा है। बढ़ते बिल्डिंग मटेरियल के दामों ने लोगों को चिंता में डाल रखा है। अपने मनपसंद का घर बनाना के लिए मुश्किल भरा काम रह गया है। शहरी और गांव में पीएम आवास के मकान का निर्माण पूरा करना उनके लिए अब टेड़ी खीर हो गई है। लोहे का सरिया से लेकर सीमेंट रेत गिट्टी के दामों ने कमर तोड़ महंगाई कर रखी है।
ये हैं सामग्री के दाम
फैक्ट फाइल---
355 रुपए (सीमेंट बोरी)
60 रुपए (किलो लोहा)
650 रुपए (कुशल मजदूर
500 रुपए (अकुशल मजदूर)
4 रुपए प्रति (ईंट)
2 हजार रुपए-एक ट्रॉली गिट्टी डस्ट
3 हजार रुपए-एक ट्रॉली मट्टी की रेत
5 हजार रुपए -एक ट्रॉली नदी लोकल की रेत
ग्रामीणों सेवक राम पटेल दुर्जन सिंह ठाकुर इदरीश खान पीपलखेड़ा ने बताया कि महंगाई ने इतनी ज्यादा है कि घर और सरकारी आवास बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हैं। चिमनी ईट की कीमत 7 से 10 रुपए और देशी ईट की कीमत 4 रुपए है। सीमेंट में 330 रुपए से लेकर 335 रुपए बोरी, लोहा 60 रुपए किलो के साथ सेटरिंग के दाम भी बढ़ गए हैं। उन्होंने बताया कि कुशल और अकुशल मजदूरों के दाम भी कुछ ही दिनों में बढ़ गए हैं।
शहर में इन दिनों मध्यवर्गीय लोगों को घर बनाना आसान नहीं है। महंगाई ने लोगों की कमर तोड दी है। पिछले एक महीने में जमीन, रेत, गिट्टी, लोहा, सीमेंट और मजदूरों के दामों में बढोत्तरी देखी गई है। हालांकि पिछले वर्ष लोहा 70 रुपए किलो था, इस समय 60 रुपए किलो बाजार में अलग-अलग कंपनियां बेच रही हैं। कुशल और अकुशल मजदूरों के दामों में इजाफा देखा गया है। सरकारी आवास और निजी घर बनाने में लोगों को पसीना छूट रहा है। कर्ज तले दबे रहने से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
जिले में एक साल से रेत की खदानें बंद पड़ी थीं।सिंडिकेट ने इसका ठेका चालू कर दिया है।गिट्टी डस्ट और मिट्टी की बनी रेत के दाम भी नदी वाली रेत के दामों को टक्कर दे रही हैं। हालांकि नर्मदा नदी की रेत के दाम एक गुना अधिक है। गिट्टी, सीमेंट और ईट में भी बढोत्तरी देखी गई है। वहीं मजदूर 500 रुपए से 750 रुपए और कारीगर 1000 रुपए एक दिन के ले रहा है। इस महंगाई को देखकर घर और आवास बनाने वाले हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। सरकारी आवास की राशि भी कम पड़ रही है।