-चेतना और मन की शुद्धि पर काम करके मिल सकती है दुख से मुक्ति 

-भारतीय ज्ञान प्रणाली में बौद्धधर्म-दर्शन एवं मूल्यपरक शिक्षा पर कार्यशाला 

-विपस्सना से स्वयं के मुक्तिमार्ग पर अग्रसर हो सकते है- प्रो. लाभ 

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

बौद्धधर्म-दर्शन एवं मूल्यपरक शिक्षा पर पांच दिवसीय कार्यशाला में बुद्ध के उपदेशों में अष्टांगिक मार्ग और शील समाधि प्रज्ञा के आलोक पर चर्चा हुई। साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि 2500 साल पहले कोई मनोविज्ञान की प्रयोगशाला नहीं थी लेकिन बुद्ध ने 121 प्रकार के चित्त का उल्लेख कर विपस्सना का आविष्कार किया जिससे मनुष्य खुद को प्रज्ञावान बना सकता है। उन्होंने कहा कि कायानुपस्सना, वेदनानुपस्सना और चित्तानुपस्सना का प्रयोग करके स्वयं के मुक्ति मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।उन्होंने कहा कि काम तृष्णा, भव तृष्णा और विभव तृष्णा यानि मुक्ति की तृष्णा की समाप्ति हो जाना ही निर्वाण है। प्रो. लाभ ने अष्टांगिक मार्ग को समझाते हुए कहा कि कायिक और वाचिक कर्म शील के द्वारा और मानसिक कर्म को समाधि से खत्म कर प्रज्ञा की अवस्था को पाया जा सकता है। प्रो लाभ ने कहा कि धर्म भी साध्य नहीं बल्कि साधन है और भगवान बुद्ध ने भी कहा है कि नदी पार करने के उपरांत नाव को किनारे ही छोड़ दिया जाता है। उन्होंने कहा कि लोभ, द्वेष और मोह अनैतिक या अकुशल कर्म हैं वहीं लोभ का त्याग, प्रेम और ज्ञान नैतिक या कुशल कर्म हैं। कार्यशाला में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के दर्शन शास्त्र विभाग के प्रभारी डॉ अनिल तिवारी ने कहा कि बौद्ध धर्म के केन्द्र में 4 आर्य सत्य है। डॉ. तिवारी ने कालाम सुत्त से बुद्ध की 10 अवधारणाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि परम्परा, किवदन्ती, आधार, तर्क, किसी पूर्व अनुभव के आधार पर मानना, श्रद्धा और किसी चीज की भव्यता के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। उन्होने बताया कि बुद्ध स्वयं के अनुभव से प्रमाणित चीजों को ही मानने का आग्रह करते हैं। डॉ. तिवारी ने कहा कि प्रज्ञा से देखी चीजों में पवित्रता होती है और समझ का सीधा संबंध मन की शुद्धि से है जो हर व्यक्ति की अलग अलग होती है। उन्होने कहा कि हर व्यक्ति में चेतना है जिसपर काम करके और प्रज्ञा को बढ़ाकर दुख से मुक्ति पा सकता है। 12 जुलाई तक कार्यशाला में बुद्ध के बाद विभिन्न शिक्षा केंद्रों का विकास और पाठ्यक्रम के साथ ही विभिन्न बौद्धाचार्यों के शिक्षा में योगदान और आज के समाज में बौद्धधर्म-दर्शन पर केंद्रित मूल्यपरक शिक्षा की उपयोगिता पर चर्चा होगी। नई शिक्षा नीति और भारतीय ज्ञान पद्धति के परिप्रेक्ष्य में कार्यशाला के माध्यम से बौद्ध धर्म दर्शन के योगदान पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा।

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28