-रमजान के आखरी अशरे में हजारों सिर झुक रहे हैं सजदे में, हासिल होती है मगफिरत

-ईद उल फितर की नमाज़ सलामतपुर ईदगाह पर 7:30 पर होगी

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28.COM हर खबर पर पैनी नज़र)

रायसेन जिला मुख्यालय सहित सलामतपुर, बेरखेड़ी चौराहा, सांची, कुल्हाड़िया, सेमरा सहित विभिन्न क्षेत्रों में रमजान-उल- मुबारक की अलविदा जुमा की नमाज अदा की गई। इस अवसर पर नमाजियों की संख्या में बढ़ोतरी होने के कारण मस्जिद इंतजामिया कमेटियों के द्वारा वजू का पानी सहित ध्वनि विस्तारक यंत्र का बेहतर इंतजाम किया गया था। नमाज- ए- अलविदा जुमा को लेकर मुस्लिम मोहल्लों में आज सुबह से ही चहल-पहल देखी गई। खास कर बच्चों में विशेष उत्साह देखा गया। छोटे-छोटे बच्चे आज नए-नए कपड़े पहनकर नमाज-ए-अलविदा जुमा अदा की। अलविदा जुमा की नमाज अदा करने के लिए नमाजी पूर्वाह्न 12 बजे से ही मस्जिदों में दाखिल होने लगे थे। जुमे का इस्लाम धर्म में विशेष महत्व है और रमजान के पाक महीने के जुमे की अहमियत और बढ़ जाती है। सलामतपुर की जामा मस्जिद सहित राजीवनगर और अन्य मस्जिदों में अलविदा जुमे की नमाज को लेकर एक अलग ही रौनक देखने को मिली है। मस्जिदों में इसके लिए खास तैयारी की गई थी। लोग नए वस्त्र पहनकर नमाज अदा करने के लिए आए। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी लोग इस दिन मस्जिदों में इबादत करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अलविदा जुमे में नमाज अदा कर लोग जो जायज दुआ मांगते हैं वह पूरी होती है। साथ ही अल्लाह की रहमत और बरकत मिलती है। साथ ही व्यक्ति को अपने गुनाहों की माफी मिलती है।

ईद से पहले निकालना चाहिए फितरा---इस माह में प्रत्येक साहिबे निसाब मुसलमान को ईद से पूर्व फितरा निकालना चाहिए जो 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या उसकी कीमत 50 रुपये होती है। ईद की नमाज से पहले गरीबों को देना चाहिए। खुदा इससे रोजे में होने वाली कमियों को पूरी करता है।वहीं इससे गरीबों की भी ईद अच्छी होती है। हमें फितरा निकाल कर पहले ही दे देना चाहिए।और इमाम साहब ने कहा कि इस्लाम मजहब में मगफिरत (मोक्ष) के लिए तकवा (संयम/सत्कर्म) जरूरी है। तकवा के लिए रोजा जरूरी है। रोजा यानी अल्लाह का वास्ता रोजा यानी मगफिरत का रास्ता रमजान के मुबारक माह के ग्यारहवें रोजे से मगफिरत का अशरा शुरू हो जाता है। जो बीसवें रोजे तक होता है। इस दूसरे अशरे को मगफिरत का अशरा (मोक्ष का कालखंड) इसलिए कहा जाता है कि इसमें अल्लाह से मगफिरत के लिए खुसुसी दुआ की जाती है। बिना किसी पाप के यानी बुराई से बचते हुए रोजे में अल्लाह की इबादत की जाती है। और माफी मांगते हुए मगफिरत की तलब की जाती है। यानी इबादत की टहनी पर मगफिरत का फूल है रोजा। 

आखरी अशरे में ही होती है शब-ए-कद्र की रात---हाफिज मकसूद साहब ने बताया कि पवित्र कुरान में ज़िक्र है ‘बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बिना देखे डरते हैं। उनके लिए मगफिरत और अज़्रे-अजीम मुकर्रर है। कुरआन की आयत की रोशनी में ग्यारहवें रोजे की तशरीह की जाए तो आधुनिक अविष्कारों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि इबादत के प्लेटफॉर्म पर मगफिरत की ट्रेन के लिए दरअसल ग्यारहवां रोजा सिग्नल है। क्योंकि ग्यारहवें रोजे से ही रमजान माह में मगफिरत का अशरा शुरू होता है। मगफिरत (मोक्ष) की बात हरेक मजहब में कही गई है। और अब यह दूसरा अशरा भी समाप्ति की ओर है। इसके बाद शुरू होगा तीसरा असर जहन्नम की आग से खुलासी का जो अभी तक अपना वक्त लापरवाही में गुजर चुके हैं उन्हें चाहिए कि वह बाकी दोनों की कद्र करते हुए रात दिन इबादत में गुजारे आखिरी अशरें में ही लैलतुलकदर है उसको ढूंढने की कोशिश करें यह ताक रातों में पाई जाती है। जिसका बेइंतहा सवाब है। उक्त मस्जिदों के अलावा भी अन्य मस्जिदों में अलविदा जुमे पर उलेमाओं ने रमजान को लेकर लोगों को तकरीर के माध्यम से समझाइश दी।

इनका कहना है।

ये रमज़ान मुबारक का आखरी अशरा चल रहा है।और शब-ए- कद्र भी आखरी अशरे में ही होती है। इसलिए रात-रात भर जागकर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगे और अपने मुल्क और सारी दुनिया में अमन चेन के लिए दुआ करें।

आलिम नसीम अहमद, पेशे ईमाम जामा मस्जिद सलामतपुर।

 

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28.COM