गणगौर तीज और सौभाग्य सुंदरी व्रत अखंड सौभाग्य के लिए किया गया
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज का उत्सव मनाया जाता है
सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। IND28.COM
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से माता पार्वती व भगवान शंकर की पूजा की जाती है। इन्हें ईसर-गौर भी कहा जाता है जिसका अर्थ है (ईश्वर-गौरी)। यह कुंवारी और विवाहिता स्त्रियों का त्योहार है। इस बार यह पर्व 8 अप्रैल, सोमवार को मनाया गया यह पर्व 16 दिनों तक मनाया जाता है।गणगौर मुख्य रूप से राजस्थान का लोकपर्व है लेकिन देश के अन्य हिस्सों में भी इसे मनाया जाता है।राजस्थान में कन्याओं के लिए विवाह के बाद प्रथम चैत्र शुक्ल तृतीया तक गणगौर का पूजन आवश्यक माना जाता है।वे चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन होलिकादहन की भस्म और तालाब की मिट्टी से ईसर-गौर(शंकर-पार्वती) की प्रतिमाएं बनाती हैं।
16 दिनों तक माता पार्वती के गीत गाए जाते हैं। कुंवारी कन्याएं उत्तम वर के लिए और विवाहिता महिलाएं सौभाग्य के लिए पूजा करती हैं।चैत्र शुक्ल तृतीया को सुबह पूजा के बाद तालाब, सरोवर, बावड़ी या कुएं पर जाकर मंगलगीत गाते हुए गणगौर (ईसर-गौर) की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। गणगौर का विसर्जन देखने योग्य होता है। पंडित अरुण कुमार शास्त्रीीी के अनुसार इस दिन व्रती (व्रत रखने वाली महिलाएं) को सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर सुहाग की सामग्री पहनकर एक वेदी बनानी चाहिए।उस पर मंडल या अष्टदल कमल बनाकर उसके बीच में माता गौरी की मूर्ति स्थापित करें तथा उसका विधिवत पूजन करें।इस दिन व्रती महिलाओं को उपवास रखना चाहिए तथा दिन में सिर्फ एक समय भोजन करना चाहिए।भोजन में केवल दूध का ही सेवन करें, तो अच्छा होता है। यह व्रत सौभाग्य और पुत्र कामना के लिए किया जाता है।