कस्बा सांचेत के रहवासियों ने लिया संकल्प, जलाएंगे कंडों की होली
सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28.COM हर खबर पर पैनी नज़र)
कस्बा सांचेत में सैकड़ो वर्ष से चली आ रही है कंडे की होली जलाने की परम्परा। कस्बे की आवादी पाँच हजार से ऊपर है। और पूरे कस्बे में सिर्फ एक स्थान पर जलती है कंडे की होली। कस्बा सांचेत के पूर्व सरपंच देवकिशन शर्मा का कहना है कि कंडों की होली जलाएं, पर्यावरण बचाएं। होली सिर्फ त्योहार या परंपरा नहीं बल्कि यह पर्यावरण से लेकर सेहत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। होली सिर्फ त्योहार या परंपरा नहीं, बल्कि यह पर्यावरण से लेकर सेहत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। रंगों के पर्व पर ध्यान रखा जाए तो उत्सव की रौनक बढ़ने के साथ ही खुशी भी दोगुनी हो जाएगी। होलिका दहन पर बुराइयों को जलाकर समाज में अमन व शांति की कामना की जाती है। पहले होलिका दहन में गोबर के कंडे जलाए जाते थे जो पर्यावरण को भी ठीक रखते थे, लेकिन अब लकड़ियों को जला रहे हैं। यह पर्यावरण को तो प्रदूषित करता ही, साथ ही पेड़ों की भी आहूति देनी पड़ती है। आइए अब की होली में यह शपथ लें कि लकड़ियों को न जलाएंगे न जलाने देंगे। प्राकृतिक रूप से होलिका के लिए गोबर के कंडों का प्रयोग करेंगे। इससे पर्यावरण भी बेहतर रहेगा और गोशालाएं भी समृद्ध होंगी। अभियान के लिए जिले के प्रमुख संगठन व संस्कृतिकर्मी आगे आ रहे हैं। गोबर के कंडे खरीदने से जहां ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की वृद्धि होगी वहीं वनों का संरक्षण भी होगा।
इनका कहना है।
गोबर के कंडे पर्यावरण की दृष्टि से बहुत उपयोगी हैं। यही कारण है कि हवन सामाग्री के रूप में इनका प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। गोबर के कंडों का प्रयोग गांव में भोजन बनाने के लिए भी किया जाता है। इससे लकड़ी की अपेक्षा पर्यावरण पर कम असर पड़ता है।
पंडित अरुण शास्त्री, सांचेत शिव मंदिर पुजारी सगोनिया।
कंडों का प्रयोग होलिका दहन में बेहतर रहेगा। इस बहाने हम भारतीय संस्कृति को फिर से जगा पाएंगे। पेड़ों की बजाय, गोबर के कंडे जलाना अच्छा प्रयोग है। इसके लिए स्थानीय लोगों को जागरूक किया जाएगा। इससे कंडों को स्वरोजगार के रूप में भी मान्यता मिल सकेगी।
लक्ष्मीनारायण साहू, इलेक्ट्रिकल व्यापारी सांचेत।
गाय के गोबर से बने कंडे होलिका दहन में प्राचीन काल से ही उपयोग किए जा रहे हैं। पूर्वाचल समाज में इनका प्रचलन आज भी है। आज कुछ लोग लकड़ियां भी जलाने लगे हैं। ऐसे में गोबर से बने कंडों को पर्यावरण हित में फिर से चलन में लाना होगा। यह बेहतर प्रयास रहेगा।
जसवंत लोधी/गरीब भैया, विद्युत लाइनमैन सांचेत।
कंडों की होली पर्यावरण व भारतीय संस्कृति दोनों के लिए बहुत उपयुक्त है। इसके लिए स्थानीय लोगों में प्रसार करना बहुत जरूरी है। नवदुनिया के माध्यम से यह अभियान निश्चित रूप से रंग लाएगा। इसके लिए अन्य संस्थाओं को भी जागरूक किया जाएगा।
विनोद लोधी, क्योस्क बैंक मैनेजर सांचेत।