होलिका दहन 7 मार्च को और धुढेरी 8 मार्च को: महंत बाबा कन्हैया दास महाराज
सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। IND28.COM
8 मार्च को होली पर्व मनाया जाएगा महंत बाबा कन्हैया दास महाराज ने बताया कब है होली क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, भद्रा काल फाल्गुन माह में होली का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। नए साल 2023 में रंगों की होली 08 मार्च को है। और उससे एक दिन पहले की रात होलिका दहन होगा। 07 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में शाम के समय होलिका दहन किया जाएगा.
फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के बाद अगले दिन होली का त्योहार होता है।
फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है।अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है।हिंदू धर्म में दिवाली के बाद होली का त्योहार सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है। रंगों के त्योहार होली में लोग एक दूसरे को रंग, अबीर, गुलाल लगाते हैं और बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं। इस साल होलिका दहन की तिथि पर सुबह में भद्रा रहेगी। काशी के सत दर्शन साधु समाज के अध्यक्ष महेंद्र बाबा कन्हैया दास महाराज बताते हैं कि होली कब है होलिका दहन कब है और होलिका दहन का समय क्या है।
होलिका दहन 2023---
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 06 मार्च दिन मंगलवार को शाम 04 बजकर 17 मिनट पर प्रारंभ होगी और इस तिथि का समापन 07 मार्च दिन बुधवार को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होती है। ऐसे में इस साल होलिका दहन 07 मार्च दिन मंगलवार को है।
होलिका दहन 2023 मुहूर्त----
07 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त शाम को 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक है। इस दिन होलिका दहन का कुल समय 02 घंटे 27 मिनट तक है। इस समय में होलिका पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी।होलिका दहन के दिन 07 मार्च को भद्रा सुबह 05 बजकर 15 मिनट तक है। ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा।
होलिका दहन के अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाएगा। ऐसे में इस साल होली का त्योहार 08 मार्च दिन बुधवार को मनाया जाएगा। 08 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 07 बजकर 42 मिनट तक है।
होली का महत्व---
भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया। होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था। इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई। इस वजह से हर साल होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है। होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।