साँची यूनिवर्सिटी में मैं भी कर्मयोगी पर कार्यशाला

-जीवन कर्म और कार्य को माने धर्म- कर्मयोग पर चर्चा
-जो काम मिले उसे पूर्णता से करना कर्मयोग- डॉ उपेन्द्र बाबू खत्री
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में मैं भी कर्मयोगी विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। राजभवन के निर्देशानुसार कार्यशाला में विश्वविद्यालय के शोधार्थी, छात्र एवं शिक्षकों ने सहभागिता की। सभी ने कर्मयोगी होने के गहरे अर्थ को समझा एवं छात्रों ने अपने अनुभव के अनुरूप कर्मयोग को परिभाषित किया। योग एवं आयुर्वेद विभाग के अंतर्गत हुई कार्यशाला में विभागाध्यक्ष डॉ उपेन्द्र बाबू खत्री ने कहा कि कर्म को औजार बनाकर अपनी चेतना के स्तर को बढ़ाना और दायित्वों के निर्वहन हेतु आतंरिक ऊर्जा में वृद्धि आवश्यक है। उन्होने ये भी कहा कि जो भी दायित्व मिले उसे खूब मजे से और पूर्णता से करना ही कर्मयोग है। वहीं विवि के छात्र ने गीता से उद्धृत करते हुए कहा कि कार्य की स्पष्टता होना और उसे करने में किसी प्रकार का द्वन्द्व का ना होना ही कर्मयोग है। कुछ छात्राओं ने कहा कि ज्ञान के प्रति आग्रह रखना और जो भी कार्य कर रहे उसको संपूर्णता से करना ही कर्मयोग है और अपनी जिम्मेदारियो को निभाकर कोई भी कर्मयोगी बन सकता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष और प्रभारी कुलपति प्रो नवीन कुमार मेहता ने कहा कि कर्मयोगी भारत में निष्काम कर्म की महत्ता प्रतिपादित की गई है। इसलिए हमें अपनी चेतना का स्तर इतना बढ़ाना चाहिए कि हमारा अहंकार खत्म हो जाये और किसी भी कार्य को करने में हमें समस्या ना हो। श्रेष्ठता के लिए व्यक्ति में नम्रता होना आवश्यक है।