-प्रसन्न जीवन के लिए मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा का अभ्यास

-मानव केन्द्रित विकास की जगह प्रकृति केन्द्रित हो जीवन  

-प्रकृति का समझदारी से उपयोग करने की जरुरत

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

बौद्धधर्म-दर्शन एवं मूल्यपरक शिक्षा पर पांच दिवसीय कार्यशाला में बौद्ध धर्म दर्शन में पर्यावरण संबंधी विचारों पर चर्चा हुई। कल्याणी विवि के पूर्व कुलपति प्रो दिलीप मोहन्ता ने बुद्ध की शिक्षाओं में प्रकृति के साथ तादाम्यता पर बात करते हुए कहा कि जिस प्रकार मधुमक्खी फूल से पराग लेकर शहद बनाती है लेकिन फूल की खुशबू और सुंदरता को कोई नुकसान नहीं करती, हमें भी यहीं मॉडल अपनाने की जरुरत है। उन्होने कहा कि बुद्ध ने प्रसन्न रहने को जीवन का उद्देश्य बताते हुए क्रोध पर नियंत्रण की जरुरत बताई है। प्रो मोहंता ने बताया कि सच बोलना और दूसरों को सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ ही अनावश्यक रुप से बोलने से भी बचना चाहिए। प्रो. मोहन्ता ने कहा कि भ्रष्टाचार समाज की सबसे बड़ी समस्या है और चरित्र निर्माण से ही सुधार हो सकता है। उन्होने कठोर सजा के बदले सुधारवादी कदमों पर जोर दिया। 

भगवान बुद्ध ने समाज में बदलाव के लिए सुधारों को ऊपरी स्तर से लागू करने की वकालत की थी। प्रो मोहन्ता के मुताबिक ये शिक्षाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू की जा सकती है। उन्होने कहा कि आज के समाज में पावर, प्रॉफिट और प्लेजर यानि आत्मसुख हावी है जबकि भगवान बुद्ध मैत्री यानि सबके प्रति निश्चल प्रेम और करुणा के साथ ही मुदिता यानि बिना निस्वार्थ भाव से दूसरों की खुशी में खुश होने और उपेक्षा यानि सभी परिस्थितियों में समभाव में रहने की जरुरत है।  भगवान बुद्ध ने मध्यमार्ग की वकालत करते हुए अहिंसा के साथ ही प्रकृति को नुकसान और दोहन की बजाय समझदारी से उपयोग की बात कही है। कार्यशाला के अंतिम दिन बौद्धधर्म दर्शन की शिक्षाओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अपनाने की कार्ययोजना पर विचार होगा। कार्यशाला से मिले सुझावों और विचार-विमर्श के आधार पर स्नातक स्तर का पाठ्यक्रम भी तैयार होगा।

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28