सतीश मैथिल/अभिषेक लोधी सांचेत रायसेन। (IND28.COM हर खबर पर पैनी नज़र)

 कस्बा सांचेत में प्राचीन संतों की भूमी मां हिंगलाज दुर्गा मठ पर चल रही श्री शिवमहापुराण का शनिवार को को समापन होना था लेकिन एक दिन और शिव महा पुराण की कथा को बड़ाया गया है। मां हिंगलाज दुर्गा मठ में जारी सात दिवसीय शिव महापुराण के अवसर पर भागवत भूषण पं. पीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज ने कथा में विस्तार से ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पुराणों के अनुसार जहां-जहां ज्योतिर्लिंग हैं, उन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, पूजन, आराधना और नाम जपने मात्र से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।शनिवार को अंतिम दिन पं. पीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज ने कहा कि शिव महापुराण कथा का विस्तार बहुत अधिक है। भगवान की भक्ति से भक्त निहाल हो जाता है। भगवान शिव कल्याण स्वरूप, सुखदाता है। दुखों को दूर करने वाले हैं। शिव श्रेष्ठ आचरण वाले, संहारकारी, कल्याण के निकेतन, भक्तों को प्राप्त होने वाले हैं। शिवजी के गले में विषैला सर्प है। शिव अपने गले में विष धारण करते हैं। उनके माथे पर चंद्रमा है। वे अपनी जटाओं में पावन गंगा को धारण किए हुए हैं। अमंगल को मंगल बना देना ही शिवत्व है। भगवान को भोलेनाथ के नाम से भी जाने जाते हैं।

हलाहल के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया-----पं.पीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज ने कहा कि समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इनमें एरावत हाथी, अमृत आदि के अलावा हलाहल भी था। 13 रत्नों को तो सुरों व असुरों ने आपस में बांट लिया था। मगर गर्म हलाहल विष को लेने वाला कोई नहीं था। कहा जाता है कि उस विष की ज्वाला बहुत ज्यादा तेज थी। देवताओं और दानवों का वहां पर खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था। देवताओं और दानवों ने मिलकर भगवान शिव की आराधना की। इस पर शिव ने अपने दोनों हाथों में उस हलाहल विष को लेकर उसे पी लिया। भगवान शंकर ने विष को निगला नहीं बल्कि पूरे विष को गले में ही रहने दिया। हलाहल के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया। इसके कारण उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। कथा आयोजक चौबे परिवार ने बताया कि रविवार को सात दिवसीय शिवमहापुराण का सादगी और भंडारे के साथ समापन किया जाएगा।

 

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