सतीश मैथिल/अभिषेक लोधी सांचेत रायसेन। IND28.COM

कस्बा सांचेत में श्री राम जानकी मंदिर प्रांगण में पुरषोत्तम माह के उपलक्ष में चल रही मासिक भागवत कथा के बारवें दिन भागवताचार्य पं, संतोष उपाध्याय ने कथा में सुनाया दुष्यंत पुत्र राजा भरत की ऐतिहासिक और रोचक कथा पं, उपाध्याय ने बताया हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए है इन महापुरुषों ने अपने बचपन में ही ऐसे कार्य किये जिन्हें देखकर उनके महान बनने का आभास होने लगा था। ऐसे ही एक वीर, प्रतापी व साहसी बालक भरत थे।भारत का जन्म कश्यप ऋषि के आश्रम में हुआ था और उनकी शिक्षा –दीक्षा हस्तिनापुर में हुई। भरत पुरुवंश के राजा दुष्यंत  और शकुंतला के पुत्र थे। राजा दुष्यंत ने अपने बेटे को विविध क्षेत्रो में अप्रतिम शिक्षा दी। शकुंतला महारानी ने उसे प्यार के साथ अच्छे संस्कार दिये।भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। भरत ने कहा-'ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं है।' अत: भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र को मार डाला महाराजा भारत की गणना महाभारत' में वर्णित १६ सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है, कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के जीवन के बारे में उल्लेख मिलता है। महाभारत के अनुसार भरत ने बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान किया ,राजा दुष्यंत के पश्चात भारत ने राज्य की बागडोर संभाली और राज को एक देश में परिवर्तित कर दिया। अब राजा भारत चक्रवर्ती सम्राट बन गया। दया करूणा शूरवीरता तथा बंधुभाव का अनोखा संगम उसकी राजसत्ता की प्रमुख विशेषता थी। उस असाधारण सम्राट के नाम से यह देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाने लगा।दुष्यन्त के बाद भरत ही राजा बने थे। जिन्होंने अपने राज्य की सीमा का विस्तार सम्पूर्ण आर्यावर्त (उत्तरी, मध्य भारत ) तक कर लिया था। अश्वमेघ यज्ञ कर उन्होंने चक्रवती सम्राट की उपाधि प्राप्त की थी।चक्रवती सम्राट भरत ने राज्य में सुदृढ़ न्याय व्यवस्था और सामाजिक एकता -सदभावना स्थापित की। राजा दुष्यंत के पश्चात भारत ने राज्य की बागडोर संभाली और राज को एक देश में परिवर्तित कर दिया। अब राजा भारत चक्रवर्ती सम्राट बन गया। दया करूणा शूरवीरता तथा बंधुभाव का अनोखा संगम उसकी राजसत्ता की प्रमुख विशेषता थी। उस असाधारण सम्राट के नाम से यह देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाने लगा। दुष्यन्त के बाद भरत ही राजा बने थे। जिन्होंने अपने राज्य की सीमा का विस्तार सम्पूर्ण आर्यावर्त उत्तरी, मध्य भारत तक कर लिया था। अश्वमेघ यज्ञ कर उन्होंने चक्रवती सम्राट की उपाधि प्राप्त की थी। चक्रवती सम्राट भरत ने राज्य में सुदृढ़ न्याय व्यवस्था और सामाजिक एकता – सदभावना  स्थापित की।श्रीमद्भागवत के अनुसार वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरुत्स्तोम' यज्ञ किया। पुराणों के अनुसार उपदेवता मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज एक महान ऋषि थे।  भारद्वाज जन्म से ब्राह्मण थे किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाये। भारद्वाज ने स्वयं कभी शासन नहीं किया। राजा भरत के स्वर्गवास जाने के बाद भारद्वाज ने बृहस्पति के पुत्र विरथ को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में चले गये। विरथ एक महान राजा साबित हुआ और उसने बहुत बुद्धिमानी के साथ राज किया। विरथ के चौदह‍ पीढ़ी बाद, शांतनु हुए जो भीष्म के पिता व पांडवों और कौरवों के परदादा थे। वंश के सब राजा 'भरतवंशी' कहलाए।

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