सतीश मैथिल/अभिषेक लोधी सांचेत रायसेन। (IND28.COM हर खबर पर पैनी नज़र)

कस्बा सांचेत मैं मां हिंगलाज दुर्गा मठ पर चल रही श्री शिव महापुराण कथा का रविबार को पूर्णाहुति के साथ समापन हुआ। श्री शिवपुराण के कथा वाचक आचार्य पं. पीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज के सानिध्य में संपन्ना किया गया है। कथा के समापन के अवसर पर पं, पीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज जी का जन्म दिन भी सभी भक्तों ने धूम धाम से मनाया। जिसमें बड़ी संख्या में सांचेत की महिलाएं व पुरुष शामिल हुए। कथा वाचक पंडित पीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज ने अंतिम दिन की कथा सुनाते हुए भक्तों से कहा कि शिव के महात्मय से ओत-प्रोत यह पुराण श्री शिव महापुराण के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव पापों का नाश करने वाले देव हैं तथा बड़े सरल स्वभाव के हैं। इनका एक नाम भोला भी है। अपने नाम के अनुसार ही बड़े भोले-भाले एवं शीघ्र ही प्रसन्ना होकर भक्तों को मनवाँछित फल देने वाले हैं। कथावाचक पंडित पीलेश महाराज ने श्रद्धालुओं से कहा कि धार्मिक आयोजनों में भावनाएं होनी जरूरी है। सगुण, साकार सूर्य, चंद्रमा, जल, पृथ्वी, वायु यह एक श्री शिव पुराण का स्वरूप हैं। उन्होंने कहा कि अपने चारों ओर सदैव वातावरण शुद्ध रखें। जहां स्वच्छता और शांति होती है, वहां देवताओं का वास होता है। जल,वायु, पेड़ एक चेतन से लेकर जड़ चेतन में आकर एक-दूसरे के सहायक बनते हैं। जहां अधार्मिकता बढ़ जाती है और कर्म को भूल जाते हैं, वहां शिव और शक्ति दोनों नहीं होते।शिव की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान शिव ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों से मुक्त कर सकते हैं, शिव की भक्ति से सुख व समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। कहा कि इस अलौकिक शिवपुराण की कथा सुनना अर्थात पाप से विमुक्त होना है। आयोजित श्री शिव महापुराण में कथा को सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुचे। कथा सार सुनकर श्रोता झूम उठे।पूर्णाहुति के पूर्व शिवपुराण के कथा वाचक पंडित पीलेश कृष्ण शास्त्री ने शिव महापुराण कथा का सार बताया। उन्होंने कहा कि अपने अभिमान में चूर होकर दक्ष प्रजापति ने कनखल में यज्ञ किया। इसमें सभी देवों व ऋषि मुनियों को आमंत्रित कर उन्होंने भगवान शिव की उपेक्षा की। इसकी सूचना सती को अपनी सहेलियों से मिली, इसके बाद शिव के समझाने के बाद भी वे यज्ञ में पहुंच गई। वहां देखा कि भगवान शिव का अपमान हो रहा है। पूछने पर राजा दक्ष ने सती का भी अपमान किया। नाराज सती ने यज्ञ कुंड में ही अपना शरीर त्याग दिया। यह जानकारी जब शिव को हुई,तब वे रौद्र रूप में आ गए और उन्होंने अपने गणों की मदद से कनखल को तबाह कर दिया। कथा के इस प्रसंग को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए। इसके बाद भव्य भंडारे का अयोजन हुआ जिसमें हजारों कि संख्या में भक्तों ने प्रसादी ग्रहण की।


न्यूज़ सोर्स : IND28.COM