सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

सात दिवसीय शिव महापुराण कथा में कथा व्यास पं.हरिनारायण शास्त्री ने कहा यह जीवन बहुत छोटा है, इसे जितना भी जिएं आनंद के साथ जिएं। पता नहीं कब अंतिम बुलावा आ जाए और आपको सब कुछ छोड़कर जाना पड़े। जीवन में आपने जितनी भी संपत्ति कमाई है वह यहीं रह जाएगी लेकिन आपके द्वारा किए गए पुण्यकार्य आपके साथ रहेंगे। जन्म तो कई मिलते हैं और हरेक जन्म में आपको माता-पिता, जीवनसाथी, संतान, भोजन आदि सब कुछ मिलेगा। लेकिन ईश्वर की भक्ति उस जन्म में भी मिले यह आवश्यक नहीं। इसलिए मानव जीवन में ही हमें भक्ति के माध्यम से मुक्ति को प्राप्त करना है। शरीर रूपी गाड़ी को आप मन रूपी पहिये से ईश्वर के दर्शन और सद्कर्म की ओर ले जाएं।यह बात पं. हरिनारायण शास्त्री (टिकोदा बालों) ने बाबई के श्रीराम जानकी मंदिर में जारी सात दिवसीय शिवमहापुराण कथा के तीसरे दिन शनिवार को कही। उन्होंने माता सती की कथा सुनाते हुए कहा कि जिस 60 पुत्रियों के जन्म के बाद भी राजा दक्ष ने मां जगदंबा की आराधना कर जब एक और बेटी के जन्म की कामना की तो मां ने दक्ष से इसका कारण पूछा। इस पर दक्ष का उत्तर था कि बेटा एक कुल को ही तारता है लेकिन बेटी दो कुल को तारती है। जिस परिवार में बेटी होती है वह बहुत भाग्यशाली होता है, इसलिए बेटी के जन्म पर उत्सव मनाना चाहिए। हो सकता है कि बेटा माता-पिता का एक बार साथ नहीं दे लेकिन बेटी माता-पिता, परिवार की परेशानी को समझती है।

शिव-सती विवाह की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि विवाह के बाद जब भगवान शिव और सती माता कुंभज ऋषि के आश्रम पहुंचे तो वहां उन्होंने ऋषि से शिवमहापुराण कथा सुनी और उस वक्त शिव व सती के मन में जो भाव थे वैसा फल उन्हें मिला। शिवजी को राम और सती माता को यज्ञवेदी में भस्म होने का वर मिला। इसलिए जब भी आप शिव महापुराण कथा सुनी तो मन में दूसरों के अहित का भाव नहीं आए।

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