सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

ग्राम बावई में श्री राम जानकी मंदिर परिसर में चल रही श्री शिवमहापुराण के पांचवे दिन कथा व्यास आचार्य पंडित हरिनारायण शास्त्री ने सुनाया तारकासुर को मारने के लिए शंकर जी ने किया विवाह। श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। इस महीने भोलेनाथ की कृपा बरसती है। लेकिन शंकर जी को सावन क्यों प्रिय है इसलिए नहीं कि शंकर जी को विष्णु जी के भी अधिकार मिल गए थे। भगवान विष्णु इन दिनों योग निद्रा में चले गए। पृथ्वी लोक की जिम्मेदारी शंकर जी के पास आ गई। शंकर जी मोक्ष के देवता हैं। लेकिन वह लोकहितकारी भी हैं। वह जग के पालक भी हैं। जगपालक और जग नियंता भगवान शंकर ने विष्णु जी के भी कार्य को संभाला। भोलेनाथ एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। सावन में उनका जलाभिषेक होता है। इसलिए भी यह महीना उनको प्रिय है। लेकिन इनसे अलग एक कथा भी है। सावन इंद्रियों को नियंत्रित करने का महीना है। कथा ब्यास आचार्य पंडित हरिनारायण शास्त्री बताते हैं तारकासुर को मारने के लिए शंकर जी ने किया विवाह कभी भी साधना और तपस्या का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। बहुत से लोग पूजा-पाठ, प्रार्थना और साधना-तप का दुरुपयोग करते हैं। हमेशा सर्वहितकारी पूजा होनी चाहिए। लेकिन तारकासुर को क्या कहिए। एक असुर था तारकासुर। उसने कठोर तप किया। अन्न-जल त्याग दिया। उसकी इच्छा थी कि वह तीनों लोक में अजेय हो जाए। अजर हो जाए और अमर हो जाए। इसी उद्देश्य से उसने कठोर तप किया। ब्रह्मा जी ने साक्षात दर्शन दिए। पूछा-बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है। तारकासुर बोला- मुझे आप वरदान ही देना चाहते हैं तो यह दीजिए कि मेरी मृत्यु न हो। मैं अमर हो जाऊं। ब्रह्मा जी बोले- यह संभव नहीं। जो आया है, उसका अंत अवश्यंभावी है। तारकासुर ने कहा कि मुझे तो यही वरदान चाहिए। ब्रह्मा जी बिना वरदान के लौट गए। तारकासुर ने अपना तप जारी रखा। कुछ दिन बाद फिर ब्रह्मा जी आए। तारकासुर ने अपनी यही इच्छा दोहरायी। इस तरह तीन बार यही हुआ। तारकासुर ने कुटिलता से विचार किया कि वह ऐसा वरदान मांगे, जिससे काम भी हो जाए और उस पर आंच भी न आए। ब्रह्मा जी से उसने कहा कि यदि उसकी मृत्यु हो तो शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न पुत्र के माध्यम से ही हो, अन्यथा नहीं उसने सोचा कि शंकरजी न विवाह करेंगे और न उनके पुत्र होगा तो वह अमर ही हो जाएगा। ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर चले गए। वरदान मिलने के बाद तारकासुर ने तीनों लोकों में आंतक मचा दिया। देवता परेशान। इंद्र परेशान। सभी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे। शंकर जी ने लोक हित में पार्वती से विवाह किया। उनके पुत्र हुए कार्तिकेय। कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। तारक कहते हैं नेत्रों को। असुर यानी बुरी प्रवृति। शंकर जी कहते हैं कि जिसने अपने नेत्रों को बस में कर लिया, वह मेरा हो गया। सावन मास शंकर जी को इसलिए प्रिय है क्यों कि इस महीने पार्वती से उनका मिलन हुआ था। तारकासुर का वध हुआ था। शंकर जी कहते हैं कि जो आया है, उसको अवश्य जाना है। कोई अमर नहीं है।

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