खेती बन रही लाभ के स्थान पर घाटे का धंधा
-निराश किसान की मजबूरी का फायदा उठा रहे व्यापारी
-समर्थन मूल्य से भी कम दाम पर बिक रही कीमती बासमती धान
वसीम कुरैशी सांची रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
एक तरफ सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय को दुगुना करके किसानों की हालत सुधारने और किसानों की खेती में आने वाली लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की बात करती है तो वहीं धरातल पर प्रशासन में बैठे अधिकारी कर्मचारी सरकार के इन दावों पर पलीता लगाने में लगे रहते हैं। ऐसे में न तो किसानों की आय दोगुनी हो पा रही है और न ही खेती लाभ का धंधा बन पा रही है।बल्कि अब खेती घाटे और कर्ज का धंधा बनती जा रही है।अगर बात करें सरकार के समर्थन मूल्य की तो वो भी ढपोलशंख ही साबित हो रहा है। हालात ये हैं कि देश का अन्नदाता कहलाने वाले किसान की दुर्दशा अब अत्यंत दयनीय होती जा रही है। ओर वो अपनी फसल में फायदा तो दूर कीबात वो फसल की लागत भी नही निकाल पा रहा है। मामला सलामतपुर कृषि उपज उपमंडी का है जहां किसानों की कड़ी मेहनत और ज्यादा लागत से पैदा की गई सोने जैसी धान व्यापारी और मंडी समिति की मिली भगत से कोड़ियों के भाव खरीदी जा रही है। और किसान अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। प्रदेश की लगभग 80 प्रतिशत आबादी का हिस्सा और खेती पर निर्भर रहने वाला किसान पहले तो मंहगा बीज ,मज़दूरी की बढ़ती कीमत,खाद के लिए कई कई दिनों तक लाइन में लगा रहना फिर पानी के लिए बची खुची कसर 10 घंटे बिजली वो भी पूरी नही, किसान की कमर तोड़ने में कोई कसर नही छोड़ती ऐसी विषम परिस्थितियों में वो अपनी फसल पैदा कर जब बेचने के लिए मंडी पहुचता हैतो वहां भी उसकी हालत दयनीय हो जाती है।पिछले साल 4500 रु बिकने वाली किसानों की वही धान अब व्यापारी कृषि मंडी समिति के अधिकारियों की मिलीभगत से 1800 और 2000 के भाव खरीद रहे हैं। जबकि किसानों के मुताबिक प्रति क्विंटल धान पैदा करने में किसान का लगभग 2500 से 3000 रु खर्च आ रहा है। वो भी उस समय जब सरकार ने बासमती धान से निम्न वैरायटी क्रांति और के 10 जैसी धान का समर्थन मूल्य भी न्यूनतम 2300 रु नियत किया हुआ ऐसे में उच्च गुणवत्ता वाली बासमती धान तो इस निम्न गुणवत्ता वाली धान से लगभग डेढ़ से दो गुना ज्यादा कीमत में बिकती है। ऐसे में व्यापारी किसानों के कर्ज चुकाने ,शादी विवाह , बोवनी और मंडी में ज्यादा ट्रालियों के आने की मज़बूरियों का जमकर फायदा उठा रहे हैं। और किसान अपनी बेबसी पर आंसू बहाते हुए ओने पौने दामों में भी अपनी कीमती फसल बेचने को मजबूर दिख रहा है। जबकि किसानों के मसीहा और प्रदेश लाडले मामा शिवराज सिंह चौहान अभी केंद्र सरकार में कृषि मंत्री बनकर खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात कर रहे हैं।
इनका कहना।
मेने 500 रु प्रति मज़दूर (ऑटो किराया ओर मुकद्दम खर्च अलग से) की दर से धान की रोपाई कराई थी। मंहगी दवाई के चार बार स्प्रे किया तीन बार निदाई कराई। मचाई में डीजल ज्यादा जला । 15500 की दर से धान का बीज खरीदा था। खाद के लिए कई बार लाइन में लगा रहा।ये सब ये सोचकर करता रहा कि मुझे अपनी धान के अच्छे रेट मिलेंगे। लेकिन जब मंडी आया तो मेरी पिछले साल 4200 के रेट बिकने वाली धान की कीमत इस साल व्यापारियों ने 2000 रु लगाई जो कि समर्थन मूल्य से भी 300 रु कम थी।
रामगोपाल, कृषक ग्राम मढ़ा।
मेरे घर मे शादी है। रोटावेटर वाले, हार्वेस्टर कटाई वाले ,बीज वाले बार बार पैसे के लिए फोन कर रहे हैं।यूरिया भी खरीदना है। मज़बूरी में मुझे अपनी पूसा धान ओने पौने दाम में बेचनी पड़ी।किसानों का दर्द समझने वाला कोई नही है।
मदनलाल, किसान।
व्यापारी को कंपनियों से कम रेट मिल रहे हैं।इसलिए वह समर्थन मूल्य से भी कम दाम पर धान की खरीदी कर रहे हैं। इस मामले में हम कुछ नहीं कर सकते।
वीनेन्द्र बघेल, मंडी कर्मचारी सलामतपुर
अगर धान की गुणवत्ता अच्छी है तो व्यापारी समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदी नही कर सकते हैं। में कल वहां जाकर दिखवाता हूं।
अभयपाल विलोडिया,मंडी सचिव रायसेन।