जीवन में सुख चाहिए तो ठाकुर जी का भजन कर/पं, प्रियंक शास्त्री
सतीश मैथिल सांचेत
सांचेत जीवन में सुख चाहिए तो ठाकुर जी का भजन करो ग्राम अंडोल में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन पंडित प्रियंक कृष्ण शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण की आठ शादियों को वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जीवन में आनंद और कल्याण चाहते हो तो ठाकुरजी का भजन करो। आप अपने इष्ट को गुरू बना कर जीवन रूपी नाव से पार उतरो।
भागवत कथा की अमृत वर्षा करते हुए कथा वाचक ने बताया कि अर्जुन के बारह नाम थे, राजसूय यज्ञ में अर्जुन धन लेकर आए तो उनका नाम धनंजय पड़ गया। जरासंध के वध के बाद उनके पुत्र को कृष्ण ने राजगद्दी पर बैठाया। एक बार परीक्षित ने सुखदेव जी से पूछा कि भागवत में जो सबसे अच्छा प्रसंग हो वह सुनाये तो सुखदेव ने सुदामा का प्रसंग सबसे अच्छा माना। सुदामा की पत्नी सुशीला थी, जब उन्हें पता चला कि द्वारकाधीश सुदामा के बचपन के मित्र. है तो उन्होंने जिद करके सुदामा को श्रीकृष्ण के पास भेज दिया। सुशीला पड़ोस से चावल उधार मांग कर लाई और सुदामा डरते डरते चावलों को अपने मित्र कृष्ण के लिए ले गए। पूछते पूछते कन्हैया के महल में पहुंचे तो द्वारकाधीश अपनी रानी रूकमणि को छोड़कर नंगे पैर दौड़ पड़े और अपने बचपन के मित्र सुदामा को महल लेकर आए तथा पलंग पर बैठा कर उनके पैर धोए। कृष्णजी ने सुदामा की पोटली से चावल की दो मुठ्ठी खा ली, लेकिन जैसे ही तीसरी मुठ्ठी चावल को खाने लगे तो उन्हें रूकमणि ने रोक लिया। इस तरह कन्हैया ने अपने मित्र को दो मुठ्ठी चावल में दो लोक दे दिए। कथा के समापन पर पूर्ण आहुति दी गई तथा ब्राह्मणों का आदर सत्कार करने के बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।