भागवत कथा के समापन पर परीक्षित मोक्ष और सुदामा चरित्र की कथा को सुनाया पंडित/नीलेश कृष्ण शास्त्री
सतीश मैथिल सांचेत
सांचेत कस्बा सांचेत में प्राचीन मां हिंगलाज दुर्गा मठ पर चल रही संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के सातवे दिन आचार्य कथाव्यास पंडित नीलेश कृष्ण शास्त्री द्वारा श्री
कृष्ण-सुदामा व परीक्षित मोक्ष कथा का प्रसंग सुनाया
श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन श्रीमद्भागवत का रसपान पाने के लिए भक्तों का सैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। कथावाचक पंडित शास्त्री महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा का समापन करते हुए कई कथाओं का भक्तों को श्रवण करवाया, जिसमें प्रभु कृष्ण के 16108 शादियों के प्रसंग के साथ, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाएं सुनाई। उन्होंने बताया सुदामा जी के पास कृष्ण नाम का धन था। संसार की दृष्टि में गरीब तो थे, लेकिन दरिद्र नहीं थे। अपने जीवन में किसी से कुछ मांगा नहीं। पत्नी सुशीला के बार-बार कहने पर सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने गए। भगवान के पास जाकर भी कुछ नहीं मांगा। भगवान अपने स्तर से सब कुछ दे देते हैं। सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। इसके उपरांत दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरुओं के बारे में बताया।
कथा समापन के दौरान पंडित नीलेश कृष्ण शास्त्री महाराज ने भक्तों को भागवत को अपने जीवन में उतारने की बात कही, जिससे सभी लोग धर्म की ओर अग्रसर हो। साथ ही भक्तों को बताया कि श्रीमद्भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है, तो वहीं इसे करवाने वाले भी पुण्य के भागी होते है चौबे परिवार के तत्वावधान में प्राचीन मां हिंगलाज दुर्गा मठ में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सत्संग के समापन पर रविवार को कथास्थल पर हवन यज्ञ और भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ में आहुति डाली और फिर भोजन प्रसाद ग्रहण कर पुण्य कमाया। कथा व्यास आचार्य नीलेश कृष्ण शास्त्री ने 7 दिन तक चली कथा में भक्तों को श्रीमद भागवत कथा की महिमा बताई। उन्होंने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा। पंडित शास्त्री ने कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्ना होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्ना होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। कथावाचक ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान का लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है। इस अवसर पर सुंदर भजन की प्रस्तुति दी गई कथा वाचक शास्त्री द्वारा प्रेम जब अनंत हो गया रोम रोम संत हों गया, ओर भजन जैसे मुझे रास आ गया हे तेरे दर पर झुकाना मुझे मिल गया पुजारी मुझे मिल गया ठिकाना, ओर मेरा छोटा सा परिवार हरी आ जय एक बार और अरे द्वार पालो कन्हैया से कह दो दर पे सुदामा गरीब आ गया हे, आदि भजनों की प्रस्तुति दी