सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

कस्बा सांचेत में भुजरिया पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। रक्षाबंधन के दूसरे दिन से जुड़ी है इसकी मान्यता। राज्य के तमाम इलाकों में रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया त्योहार मनाया जाता है। रायसेन जिले के सांचेत हर्षोल्लास के साथ भुजरिया पर्व मनाया गया है। इन तस्वीरों में प्रकृति प्रेम और खुशहाली की झलक साफ़ नज़र आ रही है। इस दिन मेले का भी आयोजन किया जाता है जो पुरानी परंपराओं को आज भी दर्शाता है।

इस पर्व से जुड़ी मान्यता---यह प्रकृति के प्रेम से जुड़ा पड़ाव है। श्रावण माह की अष्टमी-नवमीं को  छोटी-छोटी टोकरियों में गेहूं और जौ के दाने बिछाकर मिट्टी और खाद डाल दी जाती है। फिर जब गेहूं की बाली बड़ी हो जाती हैं तब आता है भुजरिया पर्व जिस नदी में इन भुजरियों  का विसर्जन किया जाता है उसका नाम भी पलक मती नदी पड़ गया है. इसी पलकमती के किनारे पर हर साल भुजरिया विसर्जन का कार्यक्रम होता है जिसे भुजरिया मेला कहते हैं।

इस बार कम बारिश से हुई मायूसी---सांचेत में इस बार बारिश बहुत कम हुई है. वहीं उमस ने हाल सबका बेहाल किया है और यही वजह है कि इसका असर इस बारी के भुजरिया मेले पर भी देखने को मिला है. भुजरिया तालाब में पानी भी कम है और यही कारण है  की महिलाएं इस दौरान एक दूसरे को बधाई देकर के शुभकामनाओं के साथ भगवान से यह भी प्रार्थना कर रही हैं कि हे प्रभु इलाके में अच्छी बारिश करो ताकि सबकी फसल बच सके। 

पानी बरसने के लिए गाए लोकगीत---इस भुजरिया पर्व को आने वाली फसल से जोड़कर देखा जाता है. इस समय खेतों में सोयाबीन, मूंगफली, उड़द और धान जैसी फसलें खड़ी है जिन्हें पानी की सख्त दरकार है. यही वजह है कि मेले में भुजरिया लेकर आई इन महिलाओं के मुंह पर लोकगीत है और सभी महिलाएं नाराज इंद्र को प्रसन्न करने की प्रार्थना में लगी है. भादो में पानी की आस करने वाली इन महिलाओं की आस्था क्या रंग लाती है यह तो समय बताएगा।

न्यूज़ सोर्स : IND28 हर खबर पर पैनी नज़र