सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

ग्राम सिरसौदा में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत भागवत कथा में गुरुवार दूसरे दिन कथा वाचक आचार्य पंडित हरिनारायण शास्त्री टिकोदा बालों ने कथा का बताया भागवत कथा का सार पंडित शास्त्री ने अपनी अमृतमयी वाणी से कथा का वाचन शुरू करते हुए कहा कि भागवत अवरोध मिटाने वाली उत्तम अवसाद है। भागवत का आश्रय करने वाला कोई भी दुखी नहीं होता है। भगवान शिव ने शुकदेव बनकर सारे संसार को भागवत सुनाई है। पंडित हरिनारायण शास्त्री ने श्रोताओं को कर्मो का सार बताते हुए कहा कि अच्छे और बुरे कर्मो का फल भुगतना ही पडता है। उन्होंने भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए कहा कि भीष्म पितामह 6 महीने तक वाणों की शैय्या पर लेटे थे। जब भीष्म पितामह वाणों की शैय्या पर लेटे थे तब वे सोच रहे थे कि मैंने कौन सा पाप किया है जो मुझे इतने कष्ट सहन करना पड रहे है। उसी वक्त भगवान कृष्ण भीष्म पितामह के पास आते है। तब भीष्म पितामह कृष्ण से पूछते है कि मैंने ऐसे कौन से पाप किये है कि वाणो की शैय्या पर लेटा हूं पर प्राण नहीं निकल रहे है। तब भगवान कृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि आप अपने पुराने जन्मों को याद करो और सोचो कि आपने कौन सा पाप किया है। भीष्म पितामह बहुत ज्ञानी थे। उन्होंने कृष्ण से कहा कि मैंने अपने पिछले जन्म में रतीभर भी पाप नहीं किया है। इस पर कृष्ण ने उन्हें बताते हुए कहा कि पिछले जन्म में जब आप राजकुमार थे और घोडे पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। उसी दौरान आपने एक नाग को जमीन से उठाकर फेंक दिया तो कांटों पर लेट गया था पर 6 माह तक उसके प्राण नहीं निकले थे। उसी कर्म का फल है जो आप 6 महीने तक वाणों की शैय्या पर लेटे है। इसका मतलब है कि कर्म का फल सभी को भुगतना होता है। इसलिए कर्म करने से पहले कई बार सोचना चाहिए। भागवत भाव प्रधान और भक्ति प्रधान ग्रंथ है। भगवान पदार्थ से परे है, प्रेम के अधीन है। प्रभु को मात्र प्रेम ही चाहिए। अगर भगवान की कृपा दृष्टि चाहते है तो उसको सच्चाई की राह पर चलना चाहिए। भगवान का दूसरा नाम ही सत्य है। सत्यनिष्ठ प्रेम के पुजारी भक्त भगवान के अति प्रिय होते है। कलयुग में कथा का आश्रय ही सच्चा सुख प्रदान करता है। कथा श्रवण करने से दुख और पाप मिट जाते है। सभी प्रकार के सुख एवं शांति की प्राप्ति होती है। भागवत कलयुग का अमृत है और सभी दुखों की एक ही औषधि भागवत कथा है।

कथा वाचक पंडित हरिनारायण शास्त्री ने उपस्थित सभी श्रोताओं से कहा कि इसलिए जब मौका मिले तब कथा सुनो और भगवान का भजन करो। अच्छे या बुरे कर्मो का फल हमें जरूर भुगतना पडता है, जब हम स्वयं से पहले दूसरो की चिन्ता करते हैं अपना पेट भरने से पहले दूसरो का पेट भरते हैं तब भगवान सबसे ज्यादा खुश होते हैं। ईश्वर ने जिन्हे सक्षम बनाया है उन्हे दान धर्म सेवा अवश्य करनी चाहिए।

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