सांची विश्वविद्यालय में राजयोग ध्यान पर विशेष व्याख्यान आयोजित
-आंतरिक शांति से बाह्य शांति अपने आप आ जाएगी
-स्वयं के प्रबंधन से जीवन का प्रबंधन हो जाता है
-छात्रों न सीखा राजयोग ध्यान
-शांति, शक्ति, आनंद, प्रेम, ज्ञान, सुख और पवित्रता इन ७ गुणों को निखारना राजयोग है
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में गुरुवार को जीवन प्रबंधन एवं राजयोग ध्यान विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। रायसेन के ब्रह्मकुमारी प्रशासन सेवा विभाग की 8 सदस्यीय टीम ने शिक्षकों, छात्रों एवं कर्मचारियों को राजयोग के माध्यम से प्रबंधन अर्थात मैनेजमेंट के गुण सिखाए। योग विभाग के द्वारा आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में ब्रह्मकुमारी लीला दीदी ने कहा कि ईश्वर ने हमें दो कान और एक मुख दिया है। इससे हमें मैनेजमेंट की यह सबसे पहली सीख मिलती है कि सुनना ज्यादा है और बोलना कम है। उन्होंने कहा कि आज डिग्रियां बढ़ रही हैं, संसाधन बढ़ रहे हैं, धन बढ़ रहा है लेकिन शांति घट रही है। उन्होंने कहा कि जीवन में दो मैनेजमेंट होते हैं। सेल्फ मैनेजमेंट और लाइफ मैनेजमेंट। अगर हम सेल्फ का अपने आंतरिक(अंदर) का मैनेजमेंट कर लेंगे तो लाइफ अपने आप मैनेज हो जाएगी। लीला दीदी ने कहा कि हम जैसा सोचते हैं वैसे दिखाई देने लगता है और जैसी सृष्टि होती है वैसी दृष्टि हो जाती है। उन्होंने कहा कि मन, बुद्धि, संस्कार और बौद्धिक यात्रा के बाद व्यक्ति को शांति आध्यात्मिक यात्रा से ही मिलती है। ब्रह्मकुमारी भारती दीदी ने सभी छात्रों और उपस्थित लोगों को राजयोग की प्रेक्टिस कर सिखाया कि कैसे आत्मा का जुड़ाव परमात्मा से किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि खुशी के साथ शांति की ज़रूरत है और ये आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से जोड़ने पर ही मिलेगी। उन्होंने कहा कि शांति, शक्ति, आनंद, प्रेम, ज्ञान, सुख और पवित्रता इन सातों गुणों को निखारना राजयोग है।
विश्वविद्यालय के डीन प्रो. नवीन कुमार मेहता ने कहा कि थ्री डी फॉर्मुले – डेडिकेशन, डिवोशन और डिसिप्लिन से जीवन का प्रबंधन आसानी से हो सकता है। योग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. उपेंद्र बाबू खत्री ने कहा कि ध्यान के लिए धारणाएं चाहिए होती हैं। धारणाएं चित्त को चैतन्य होने से रोकती हैं और धारणाओं से मुक्त होकर ही व्यक्ति ईश्वर की ओर अग्रसर हो सकता है। ब्रह्मकुमारी मिशन के भाई वी त्रिलोचन ने कहा कि समाज में अव्यवस्था आत्म के अवमूल्यन के कारण हो रही है। मूल्यों की कमी के कारण हो रही हैं। उन्होंने कहा कि मूल्यों को साधना अंतर को साधना है।