सांची विश्वविद्यालय में सरदार वल्लभ भाई पटेल पुण्यतिथि पर विशेष व्याख्यान
-सरदार पटेल कर्मयोगी थे”- कृष्ण कुमार
-‘पटेल अंग्रेज़ों के साम्राज्यवाद को गहनता से समझते थे’
-किताबों से अधिक सरदार पटेल जीवन से सीखते थे”
-देश को सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्व की ज़रूरत है- कृष्ण कुमार
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आज देश के प्रथम गृहमंत्री और लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल को याद किया गया। कल यानी दिनांक 15 दिसंबर को उनकी पुण्य तिथि थी। विशेष व्याख्यान के अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि सरदार पटेल निस्वार्थ और बगैर किसी लोभ-लालच के कार्य करते थे। प्रो. लाभ ने कहा कि अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता मिलने के बाद आमजन सरदार पटेल को उनकी निस्वार्थ सेवा के कारण प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता था। लेकिन गांधी जी का प्रस्ताव था कि जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया जाए। इस पर जब गांधी जी ने सरदार पटेल से पूछा कि वो चाहते हैं कि नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया जाए तो सरदार पटेल का कहना था कि उन्हें प्रधानमंत्री पद का लालच नहीं है और फिर नेहरू जी को प्रधानमंत्री बना दिया गया। सांची विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान के मुख्य वक्ता के रूप में स्वतंत्र लेखक, अनुवादक, शोधकर्ता कृष्ण कुमार ने सरदार पटेल के जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सरदार तो असल में एक योगी थे जो कर्मयोग में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल किताबों से अधिक जीवन से शिक्षा ग्रहण करते थे, हालांकि वो इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई करके आए थे। सरदार पटेल के कई अन्य प्रसंगों पर चर्चा करते हुए श्री कृष्ण कुमार ने कहा कि पैसों की कमी के कारण सरदार पटेल ने पहले अपने बड़े भाई को वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा था और उनके लौटने के बाद खुद वकालत करने इंग्लैंड गए थे जहां पर वो लाइब्रेरी में सुबह पढ़ने जाते और शाम लाइब्रेरी बंद होने तक पढ़ते रहते। लाइब्रेरी जाने के लिए पटेल 13 मील आते-जाते थे।
उन्होंने बताया कि बारदौली के किसान आंदोलन में सरदार पटेल की निस्वार्थ सेवा के कारण गांधी जी ने वल्लभ भाई को सरदार का खिताब दिया था। कृष्ण कुमार जी ने बताया कि सरदार पटेल जब अहमदाबाद नगर निगम के म्यूनिसिपल कमिश्नर थे तो एक दिन सुबह से रात तक बारिश होती रही जिससे सब जगह जलभराव हो गया। सरदार पटेल रात एक बजे सड़कों पर थे और अगले दिन शाम तक पानी की निकासी के लिए कार्य करवाते रहे। प्लेग फैलने के दौरान भी उन्होंने अपने को झोंक दिया था। कृष्ण कुमार ने बताया कि अंग्रेज़ प्रधानमंत्री विनस्टन चर्चिल की बेटी की डायरी के अध्ययन से उद्धृत हुआ है कि चर्चिल ने भारत के वाइसरॉय को निर्देश दिए थे कि वो भारत के 50 टुकड़े करें अर्थात 50 रियासतों में बांट दें। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने भारत के 566 स्वतंत्र रियासतों को एक कर एक देश के रूप में खड़ा कर दिया था जिसके कारण वो लौह पुरूष कहलाए जाते हैं। उनका कहना था कि अंग्रेज़ों के साम्राज्यवाद को गांधी के अलावा सरदार पटेल अच्छे से समझते थे। कृष्ण कुमार ने कहा कि भारत में आज सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्व वाले लोगों की ज़रूरत है। उनका कहना था कि विचार करना चाहिए कि हमारे विश्वविद्यालय, हमारा शिक्षा जगत, हमारा लेखन कैसे सरदार पटेल जैसे चरित्रवान पैदा कर सकता है। श्री कृष्ण कुमार ने राजमोहन गांधी की किताब मोहनदास का हिंदी में अनुवाद किया है। इसके अलावा उन्होंने “ए फीस्ट ऑफ वल्चर्स” का हिंदी अनुवाद “गिद्धों का भोज” के रूप में किया है। जोसी जोसेफ की लिखी यह पुस्तक भारतीय लोकतंत्र पर गहन नज़र डालती है।