द्वन्व् रुपी संसार में श्रद्धा के सहारे ही मुक्ति संभव, विवेक चूडामणि पर विशेष व्याख्यान
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में विवेक चूड़ामणि में साधन चतुष्टय पर मद्रास संस्कृत महाविद्यालय चेन्नई के प्राध्यापक महामहोपाध्याय आर. मणि द्राविड़ शास्त्री के विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। प्रो. द्राविड शास्त्री ने कहा कि उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता प्रस्थानत्रयी कहलाते हैं किन्तु गूढ़ होने से आदि शंकराचार्य ने प्रारंभिक जिज्ञासु को ध्यान में रखकर विवेक चूडामणि की रचना की है। अद्वैत वेदान्त का यह प्रकरण ग्रंथ विषय के प्रवेश द्वार के समान हैं किन्तु जिज्ञासु को मुक्ति दिलाने में समर्थ है। ब्रह्म के ज्ञान के लिए जिज्ञासु में जिन गुणों की आवश्यकता होती है वे साधन-चतुष्टय कहलाते है। मोक्ष के साधनों की साधन चतुष्टय के रुप में व्याख्या करते हुए कहा कि नित्य अनित्य का विवेक, भोगों के प्रति वैराग्य का भाव; शम(मानसिक नियंत्रण), दम(इंद्रियों का नियंत्रण), उपरति (मन का विषयों से हटना), तितिक्षा( सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख आदि के प्रति समभाव), समाधान (समाधि या एकाग्रता) और श्रद्धा यानि शास्त्र वचन या गुरु में अगाध भरोसा षठ साधन के साथ मुक्ति की तीव्र इच्छा मोक्ष के लिए जरूरी है।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि मोह-माया के बंधनों को तोड़ने के साधन आवश्यक हैं। उन्होने बताया कि बौद्ध दर्शन में मोक्ष के लिए निर्वाण शब्द का उपयोग हुआ है। उन्होने समझाया कि सामान्य प्राणी नित्य को अनित्य और अनित्य को नित्य मानकर बंधन में पड़ा रहता है। भगवान् बुद्ध ने बहुत सरलता से नित्य और अनित्य के विवेक पर जोर दिया है। उन्होने वैराग्य की आवश्यकता प्रतिरूपित करते हुए कहा कि भक्ति हमें लोभ और भय से ऊपर मुक्ति की ओर ले जाती है। निष्काम कर्म के भगवान् कृष्ण और बुद्ध की शिक्षा को समझाते हुए उन्होने कहा कि मुमुक्षा की तीव्र इच्छा मोक्ष के लिए जरुरी हैं। महामहोपाध्याय आर मणि द्राविड़ शास्त्री जी ने कई महान गुरुओं से शास्त्रोक्त शिक्षा ग्रहण की है। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा महर्षि बादरायण व्यास सम्मान एवं आर्ष विद्या भारती सम्मान एवं कई उपाधियों से सम्मानित किया गया है। उन्होने 24 से ज्यादा कृतियों की रचना की है।धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए साँची विवि के कुलसचिव एवं अधिष्ठाता प्रो. नवीन कुमार मेहता ने कहा कि वैराग्य के बिना मोक्ष सम्भव नहीं है। उन्होने कुलगुरु प्रो लाभ द्वारा मोक्ष एवं निर्वाण की व्याख्या से भी लाभान्वित होने के लिए सुधीजनों का धन्यवाद दिया। भारतीय दर्शन विभाग के इस आयोजन का संचालन डॉ नवीन दीक्षित ने किया। बुद्ध वंदना शुभम भन्ते द्वारा एवं सरस्वती वंदना छात्रा पूजा यादव द्वारा की गई।