राम वन गमन मार्ग के पुरातात्विक प्रमाणों पर विशेष व्याख्यान

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में भगवान राम के लंका जाने के मार्ग के पुरातात्विक प्रमाणों पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत कला केन्द्र के डॉ देव प्रकाश शर्मा ने पुरातात्विक अवशेषों की तस्वीरें और मानचित्र दिखाकर राम वन गमन पथ को अपने व्याख्यान में साकार किया।मध्य प्रदेश में राम से संबंधित स्थलों पौंडी(रीवा), कर्वी(चित्रकूट), सतना, नरसिंहपुर, गुंगेरिया (बालाघाट), पांडव गुफाएं व अन्य स्थल (पचमढ़ी), करेहा(शिवपुरी) से प्राप्त ऐतिहासिक अवशेषों की तस्वीरें और रॉक पेन्टिंग्स दिखाते हुए उन्होंने बताया कि राम का काल कृष्ण के काल से पहले का है। पचमढ़ी में मिली रॉक पेंटिंग्स के ज़रिए उन्होंने बताया कि ये तस्वीरें तकरीबन 5100 साल ईसा-पूर्व की हैं। उन्होंने तांबे के भाले, तीर, खुदाई करने में उपयोग होने वाले छेनी व अन्य हथियार तथा उपकरणों के फोटो दिखाए जो कि रामपथ गमन स्थलों से प्राप्त हुए हैं। उन्होंने पचमढ़ी से मिले रॉक पेन्टिग्स में शिवधनुष उठाते राम, जटायु से मिलते राम, सीता से अनुमति लेते हनुमान, कटने के बाद रावण के नये सिर निकलते और समुद्र पर पुल बनाते नल-नील की पेन्टिग्स दिखाई जो रामायण की विभिन्न घटनाओं को दर्शाती है। पन्ना के बृहस्पति कुण्ड की तस्वीर में राम मारीच को मारते हुए दिखाये गए हैं।डॉ. शर्मा ने इलाहाबाद के द्रौपदी घाट, भारद्वाज आश्रम इत्यादि पर की गई पुरातात्विक खोजों का विशेष रूप से ज़िक्र किया और बताया कि आज भी इलाहाबाद के कई स्थानों पर हज़ारों साल पहले के रामायण काल के अवशेष मिल रहे हैं। डॉ. शर्मा ने कहा कि वाल्मिकी रामायण में जिस भारद्वाज आश्रम का वर्णन है वह इलाहाबाद का द्रौपदी घाट है। उन्होंने एक ऐतिहासिक जानकारी साझा की कि काशी हिंदू विश्वविद्याल की स्थापना 1912-13 में सबसे पहले मदन मोहन मालवीय ने इलाबाद के द्रौपदी घाट पर ही की थी। जिसे बाद में बनारस में स्थानांतरित किया गया।डॉ शर्मा ने कहा कि अंग्रेज़ पुरातात्वविद कनिंघम व मार्शल ने बौद्ध साइटों पर अत्यधिक खोजें कीं। उन्होंने रामायण आर्कियोलॉजी पर कार्य करने की आवश्यकता जताते हुए कहा कि नई खोजों से रामायण और महाभारत काल की अनसुलझी बातें सामने आएगी। उन्होंने बताया कि 1974-75 में पुरातत्व विभाग के प्रो. बी.बी लाल के साथ में उन्होंने बहुत खुदाई का कार्य किया है जिसमें तांबे के हथियार, टेराकोटा के बर्तन(गेरुए रंग के बर्तनों के अवशेष) व रॉक पेंटिंग्स का अध्ययन किया है। उन्होंने इन स्थानों से मिली कई मूर्तियों की तस्वीरें दिखाईं जो आज अमेरिका के म्यूज़ियमों की शोभा बढ़ा रही हैं।साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि राम वन गमन के 14 वर्षों पर गहन पुरातात्विक अध्ययन किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि आजादी के बाद एक विचारधारा के अंतर्गत राम और लक्ष्मण को मिथक बना दिया गया। उन्होंने प्रामाणिक और प्राथमिक स्त्रोतों से खोज की महत्ता भी छात्रों को समझाई। धन्यवाद देते हुए कुलसचिव एवं अधिष्ठाता प्रोफेसर नवीन कुमार मेहता ने कहा कि अगर ट्रोजन वॉर सत्य है तो रामायण और महाभारत भी असल में घटित हुए हैं और उनकी सत्यता पर सवाल नहीं उठना चाहिए।विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम से छात्रों ने रुचिकर जानकारी प्राप्त की और डॉ. शर्मा से जिज्ञासापूर्वक कई सवाल किये।