सांची यूनिवर्सिटी का स्थापना दिवस आयोजित, छात्रों की उपलब्धियां गिनाई
-तलवार और लोभ से नहीं फैला है बुद्ध धर्म- प्रो. लाभ
-शिक्षक छात्र के दूसरे माता पिता होते हैं- डॉ. बी.एस यादव
-भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र है सांची विश्वविद्यालय”
-विश्वविद्यालय के न्यूज़ लैटर का विमोचन किया गया
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
कस्बा सलामतपुर में स्तिथ साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के 12वां स्थापना दिवस कार्यक्रम पर बोधिवृक्ष की वंदना की गई। विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो बैद्यनाथ लाभ ने बोधिवृक्ष की महत्ता बताते हुए कहा कि सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा बोधगया से बोधिवृक्ष की शाखा लेकर श्रीलंका गई थी। 2012 में सांची विश्विद्यालय की स्थापना के समय श्रीलंका के राष्ट्रपति ने उसी बोधिवृक्ष का पादप यहां रोपा था। प्रो. लाभ ने कहा कि आज युद्ध में उलझी दुनिया में बौद्ध धर्म जीवन की पद्धति बन गया है। सांची विश्वविद्यालय की स्थापना से ही जुड़े रहे प्रो लाभ ने कहा कि विश्वविद्यालय विहंगम और वैश्विक दृष्टिकोण से स्थापित हुआ है। उन्होने कहा कि वैश्विक रुप से सांची विवि निखरेगा और अपने कैंपस में आने के बाद विदेशी छात्रों के लिए भी सुविधाएं स्थापित की जा रही है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और आई.ई.एस यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. बी. एस. यादव ने कहा कि अपनी सीमाओं को ताकत बनाने का काम शिक्षक अच्छे से जानता है और उसे कोई ताकत सफल होने से नहीं रोक सकती। विश्वविद्यालय को नई ऊंचाईयां छूने की शुभकामना देते हुए उन्होने कहा कि घर में माता- पिता के बाद स्कूल में उसके दूसरे माता-पिता, शिक्षक ही होते हैं। डॉ. यादव ने अपने विश्वविद्यालय के दो पूर्व छात्रों की सफलता की कहानियां भी बताईं और कहा कि जब छात्र कामयाब होता है तो असल कामयाबी उसके शिक्षक की भी होती है। स्थापना दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय के वार्षिक न्यूज़ लैटर का भी विमोचन किया गया तथा विश्वविद्यालय के डीन प्रो. नवीन कुमार मेहता की लिखी दो पुस्तकों “रिसर्च मैथड इन एजुकेशन” व “टीचिंग इंगलिश लिटरेचर एंड लैंग्वेज” तथा डॉ. राहुल सिद्धार्थ की लिखी दो पुस्तकों “हिंदी साहित्य का उत्तर मध्य काल-विविध आयाम” व रस्किन बॉन्ड की लिखी अंग्रेज़ी पुस्तक का हिंदी अनुवाद “भय से साक्षात्कार” का भी विमोचन किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की 12 वर्षों की यात्रा पर केंद्रित एक डॉक्युमेंट्री भी प्रदर्शित की गई।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र सांची विश्वविद्यालय है। प्रो चतुर्वेदी ने विश्वविद्यालय का प्रगति प्रतिवेदन पेश करते हुए छात्रों की उपलब्धियां गिनाई। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन देते हुए डीन प्रो नवीन मेहता ने 12 सालॆं की यादें ताजा की। कार्यक्रम का संचालन डॉ राहुल सिद्धार्थ ने किया।