मानवता की गरिमा की पुनर्स्थापना के लिए गीता संदेश- कुलगुरु प्रो. लाभ
-मानवीय गरिमा का सर्वोच्च शिखर है गीता,सांची विश्वविद्यालय में गीता जयंती पर विशेष व्याख्यान
-“गीता मोक्ष शास्त्र है, ब्रह्म विद्या है, योग शास्त्र है”- स्वामी नित्यज्ञानानंद
-देवत्व की अभिव्यक्ति के लिए मानव जीवन मिलता है- स्वामी नित्यज्ञानानंद
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में गीता जयंती और विश्व मानवाधिकार दिवस पर विशेष संयुक्त व्याख्यान आयोजित हुआ।“श्रीमद्भगवद गीता में मानव गरिमा” पर बोलते हुए कुलगुरु प्रो वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि गीता का संदेश मानवीय गरिमा की पुनर्स्थापना के लिए दिया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रामकृष्ण मिशन, भोपाल के सचिव स्वामी नित्यज्ञानानंदजी ने कहा कि गीता मोक्ष शास्त्र है, ब्रह्म विद्या है, योग शास्त्र है। कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गीता वेदांत का चरमोत्कर्ष है। उन्होने कहा कि भारतीय सनातन ज्ञान परंपरा में बुद्ध को नौवां अवतार माना जाता है। बुद्ध ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ धम्म की बात करते हुए इसे सभी चीजों का आधार बताते हुए कहा कि सनातन में भी धर्म सभी के केन्द्र में है। बिना धर्म के अर्थ संग्रह भी निषेध है। गीता में मानव गरिमा को समझाने के लिए स्वामी नित्यज्ञानानंदजी ने आदि शंकराचार्य के विवेक-चूडामणि ग्रंथ का उल्लेख करते हुए कहा कि मानव जीवन मिलना, मुक्त होने की उसकी इच्छा होना और आत्मज्ञानी पुरूष का साथ मिलना एक बड़ी उपलब्धि होती है। उन्होने कहा कि धर्म भी एक विज्ञान है। जिस तरह से साधारण मनुष्यों के समझने के लिए राम चरित्र मानस है उसी तरह बौद्धिक लोगों के लिए गीता है। हिंदू धर्म में उपनिषद, गीता और ब्रह्मसूत्र तीन तार्किक धर्मग्रंथ हैं। उन्होंने कहा कि गीता और रामचरित्रमानस जैसे ग्रंथ मोक्ष प्राप्ति का साधन हैं।विश्वविद्यालय के कुलसचिव व अधिष्ठाता प्रो. नवीन कुमार मेहता ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि मानव की गरिमा उसके धर्म में है। उन्होने गीता के 18 अध्यायों का विवरण देते हुए कहा कि इनमें 6 में कर्मयोग, 6 में ज्ञानयोग और 6 अध्याय में भक्तियोग की बात है। कार्यक्रम के संयोजक भारतीय दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन दीक्षित ने बताया कि मानवाधिकार दिवस को दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मारे गए लोगों की याद में तथा मनुष्यों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा और मानवीय गरिमा की सुरक्षा हेतु घोषित किया था।