सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (ND28.COM हर खबर पर पैनी नज़र)

हम आपको एक ऐसे कस्बे के बारे में बता रहे हैं जो एक अलग ही परंपरा के चलते काफी प्रसिद्ध है। यहां पर होली की दूज पर हंसिया, चाकू का उपयोग नहीं होता है। यह खंडेरा कस्बा जिला मुख्यालय रायसेन से 18 किमी दूर सागर रोड पर स्थित है। और तो और इस दिन कस्बे के घरों में ना तो सब्ज़ी काटी जाती है और ना ही किसान फसल काटते हैं। ये काम धुलेंडी की रात 12 बजे से बंद हाे जाते हैं। जो हाेली की दूज के दिन रात नौ बजे के बाद ही चालू होते हैं। सालों से यह परंपरा चली आ रही है। बुधवार को खंडेरा गांव सहित आसपास के गांवों के लोग छोले वाली माता मंदिर में एकत्रित होंगे।ग्रामीण साल में एक बार होने वाली पूजा में भाग लेगे। करीब दो घंटे तक मंदिर में पूजा होगी। खंडेरा माता मंदिर के पुजारी पंडित ओम महाराज दुबे के मुताबिक गांव में यह परंपरा है। धुलेंडी वाली रात में 12 बजे से दूज की रात नौ बजे तक हंसिया, चाकू ,कुल्हाड़ी सहित किसी भी धार वाले औजार का उपयोग नहीं किया जाता।

अनोखी परंपरा---गांव के लोग एक दिन पहले ही काट लेते हैं सब्जी, छोले वाली माता मंदिर में सभी ग्रामीण करते हैं पूजा।

परंपरा के पीछे यह है मंदिर की कहानी---बुजुर्गों सहित पं.ओम महाराज दुबे बताते हैं कि एक बार गांव में महामारी फैली। ग्रामीण एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार करके लौटते तो 3 लोग मरे मिलते। महामारी को रोकने एक संत के कहने पर ग्रामीणों ने 7 दिन यज्ञ किया। पूर्णाहुति के दिन जमीन से 5 प्रतिमाएं निकलीं, उनका नाम पड़ा छोले वाली माता। होली की दूज पर पूजा के लिए हर घर से दो किलो गेहूं चंदे में लिया जाता है। दूज पर लोग पूजा करते हैं। बकरी के बच्चे के बलि दी जाकर उसका खून एक खप्पर में भरकर चबूतरे पर रख दिया जाता है और बकरी के बच्चे का धड़ मंदिर में ही रखकर छोड़ दिया जाता है। रात भर मंदिर के पट खुले रखे जाते हैं। कहा जाता है कि रात में शेर बकरी के बच्चे का धड़ खाने आता है।खंडेरा स्थित प्रसिद्ध देवी मंदिर नवरात्रि के दिनों में जिले के हजाराें श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना जाता है। इन नौ दिनों में मंदिर में हजारों ध्वज और चुनरियां देवी को अर्पित की जाती हैं। वहीं दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मंदिर के पुजारी ओम प्रकाश दुबे के मुताबिक खंडेरा गांव में बहुत पहले एक बार महामारी फैली थी। गांव में तीन अर्थियां एक साथ ले जाई जा रही थीं। एक संत ने पूछा ये क्या है। ग्रामीणों ने उन संत को बताया ऐसा गांव में रोज ही हाे रहा है। संत ने ग्रामीणों को गांव से चंदा कर सात दिवसीय यज्ञ कराने के लिए कहा। गांव में चंदा भी सात रुपए हुआ। इसके बाद यज्ञ कराया गया। यज्ञ के सातवें दिन अचानक तेज आवाज आई और छोले के पेड़ के पास जमीन फट गई। यहां से रथ पर सवार पांच मुख वाली देवी प्रतिमा निकली। संत के कहने पर देवी का नाम छोले वाली माता पड़ गया।

इनका कहना है।

दिसंबर में होता है अखंड रामायण, यज्ञ और मेला 

खंडेरा माता मंदिर में 4 से 12 दिसंबर तक मंदिर में अखंड रामायण और यज्ञ कराया जाता है। वहीं इन दिनों मंदिर परिसर में मेला भी लगता है। नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालु करीब तीन हजार से अधिक झंडे और 13 किलोमीटर लंबी चुनरी सहित सैकड़ों चुनरी देवी को अर्पित की जाती हैं। यहां भंडारे भी रखे जाते हैं। 

ओम महाराज दुबे, मंदिर के पुजारी खंडेरा।

होली की दूज पर होता है विशेष पूजन 

होली की दूज पर पूरे गांव के लोग वहां बकरी के बच्चे को लेकर पूजन करने जाते हैं। इस बच्चे पर जल छिड़कर मंदिर परिसर में छोड़ दिया जाता है। यदि यह बच्चा फुरहरी लेता है तो ऐसा माना जाता है कि देवी ने पूजन स्वीकर कर ली। इसके बाद बकरी के बच्चे की बली दी जाती है। इसके बाद मृत बच्चा और उसके खून काे खप्पर में भरकर एक चबूतरे पर रख दिया जाता है। दूसरे दिन चबूतरे पर खून से बने शेर के पंजे के निशान देखने को मिलते है। यदि ये निशान नहीं दिखाई दिए तो हलवा को भोग मंदिर में लगाया जाता है। इस खास दिन पूरे गांव में धार वाले हथियार से कोई काम नहीं किया जाता।

खेमराज बघेल, सरपंच खंडेरा। 


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