सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र) 

शुक्रवार को वट सावित्री पूर्णिमा पर व्रत रखा जाएगा। पंडित अरुण शास्त्री ने बताया की व्रत की सही तिथि कब है और शुभ मुहूर्त एवम और पूजा विधि पंडित अरुण शास्त्री बताते हैं।पति की लंबी आयु और सुहाग की रक्षा के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। वट सावित्री व्रत अमावस्या की तरह ही ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा का व्रत रखते हैं।हिंदू धर्म में ‘वट सावित्री व्रत’ का विशेष महत्व है। इस बार ‘वट सावित्री व्रत’ का दूसरा व्रत, यानी ‘वट सावित्री पूर्णिमा’वट सावत्रि  का व्रत 21 जून शुक्रवार को रखा जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में रखा जाता है। मान्यता है इस व्रत को करने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है। इस व्रत की कथा सावित्री और सत्यवान से जुड़ी है। कहते हैं, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से जीवित कराया था।

पंडित अरुण शास्त्री ने बताई तिथि-- 

21 तारीख शुक्रवार को पूर्णिमा 7 बजकर 32 मिनट पर लग जा रही है। 22 तारीख को सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। वट पूर्णिमा का व्रत 21 जून को ही किया जाएगा।

शुभ मुहूर्त----

वट पूर्णिमा की पूजा के लिए तीन मुहूर्त सबसे शुभ है। इन तीन मुहूर्त में पूजा करना उत्तम रहेगा।

1-लाभ चौघड़िया का समय 7 बजकर 8 मिनट से 8 बजकर 53 मिनट पर

2-इसके बाद अमृत चौघड़िया 8 बजकर 53 मिनट से 10 बजकर 38 मिनट तक।

3-शुभ चौघड़िया 12 बजकर 23 मिनट से 2 बजकर 7 मिनट तक।

वट सावित्री पूर्णिमा पूजन विधि---

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ घर की साफ-सफाई करें। फिर स्नान-ध्यान कर पवित्र और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन सोलह श्रृंगार करना अति शुभ माना जाता है। इसके बाद सबसे पहले सूर्यदेव को अर्घ्य दें।तत्पश्चात, सभी पूजन सामग्रियों को किसी पीतल के पात्र अथवा बांस से बने टोकरी में रख नजदीक के बरगद पेड़ के पास जाकर उनकी पूजा करें। पूजा की शुरुआत जलाभिषेक से करें। फिर माता सावित्री को वस्त्र और सोलह श्रृंगार अर्पित करें। अब फल फूल और पूरी पकवान सहित बरगद के फल चढ़ाएं और पंखा झेलें। इसके बाद रोली से अपनी क्षमता के अनुसार बरगद पेड़ की परिक्रमा करें। इसके बाद माता सावित्री को दंडवत प्रणाम कर उनकी अमर कथा सुनें। इसके लिए आप स्वयं कथा सुनें। इसके लिए आप स्वयं कथा का पाठ कर सकते हैं। या वरिष्ठ महिलाओं के समक्ष भी व्रत-कथा सुन सकती हैं। जब कथा समाप्त हो जाए प्रार्थना कर पंडित जी को दान-दक्षिणा दें। इसके बाद दिन भर निर्जला उपवास रखें और शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा सम्पन्न कर व्रत खोलें।

महिमा---पूर्णिमा और अमावस्या वट सावित्री व्रत में विशेष अंतर नहीं है। इस विशेष दिन पर शुभ मुहूर्त में सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए वृक्ष के चारों ओर रक्षा सूत्र बांधती हैं। इस विशेष दिन पर वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसा क्योंकि मान्यता है वट वृक्ष में भगवान विष्णु वास करते हैं। इसलिए वट वृक्ष की पूजा करने से साधकों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है

 

न्यूज़ सोर्स : IND28 हर खबर पर पैनी नज़र