सतीश मैथिल/अभिषेक लोधी सांचेत रायसेन। IND28.COM

अक्षय तृतीया पर बच्चे बरगद के नीचे गुड्‌डा-गुड़ियाें के विवाह रचाया गया।वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को शनीवार को अक्षय तृतीया मनाई गई। इस अवसर पर बच्चे गुड्डे-गुड़ियों के विवाह में जुटे रहें। वहीं घरों में मटकों की पूजा की जाएगी। दिन भर धार्मिक आयोजन अपने अपने घर मैं ही चलते रहेंगे। पंडित अरुण शास्त्री ने बताया शनिवार को भगवान परशुराम जयंती व अक्षय तृतीया पर लोगों ने भगवान विष्णु व उनके अवतार परशुराम की पूजा-अर्चना की गई। भगवान को सत्तु का भोग लगाया गया । अक्षय तृतीया पर्व पर ब्राह्मण भोज व विप्र दान को पुण्यकारी माना गया है। इसलिए पूजा के बाद लोगों द्वारा ब्राह्मण भोज कराया जाता है और उन्हें ठंडे पानी से भरा घड़ा, सत्तू व मौसमी फल दान में दिया जाता है।मान्यतानुसार अक्षय तृतीया के बाद ही सत्तू व आम का उपयोग खाने में किया जाता है।कन्या शगुन बांट कर मनाई गई क्षय तृतीया या आखा तीज का पर्व लोगों द्वारा भगवान परशुराम के अर्ध देकर मनाया गया।इस दिन शुभ कार्य करने से उनका अक्षय फल मिलता है। इसलिए वैशाख माह की तिथि स्वयं सिद्ध मुहूर्त मानी जाती है। इसलिए इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य लोग सम्पन्न करते है। महिलाओं द्वारा विशेष कच्चे पकवान पकाए, जाते हैं मिट्टी के घड़े में फल, प्रसाद रखकर भगवान लक्ष्मीनारायण एवं लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना की। जाती है इस दिन सौभाग्वती स्त्रियां और क्वारी कन्याओं ने इस दिन गौरी पार्वती की पूजा की तथा मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, चने की दाल लेकर बड़ी देवी मंदिर  पहुंचते हैं और बरगद के वृक्ष के नीचे एकत्रित होकर कन्याओं ने पूजा अर्चना की। इसके बाद कन्याओं ने घर घर कुटुंब के लोगों के पास जाकर शगुन के रूप में चने की दाल प्रसाद के रूप में वितरित कर बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद प्रदान किया जाता है।कई वृक्षों के नीचे में बच्चों करेंगे गुड्‌डा-गुड़ियों के विवाह  शाम को छोटे-छोटे बच्चे अपनी टोलियों के साथ  में गुड्‌डा-गुुड़ियों के विवाह की रस्में अदा की उत्साह के साथ बच्चे अपने आयोजन में जुटे रहे। दुल्हन को आकर्षक ढंक से सजाकर तैयार किया जाएगा। वहीं दूल्हा की विशेष सो सज्जा की गई।

 

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