भोपाल। मप्र में जैसे-जैसे भाजपा का कुनबा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मूल भाजपाईयों में असंतोष बढ़ रहा है। मूल भाजपाईयों की नाराजगी की असली वजह यह है कि दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को अधिक महत्व दिया जा रहा है। उन्हें पद और प्रतिष्ठा मिल रही है, जबकि मूल भाजपाईयों को टारगेट पर टारगेट सौंपा जा रहा है। ऐसे में अब सत्ता और संगठन ने नाराज भाजपाईयों को संतुष्ट करने की रणनीति बनाई है। इसके तहत दिवाली बाद संगठन की एक बड़ी बैठक आयोजित की जाएगी और नाराज नेताओं के गिले-शिकवे दूर किए जाएंगे। जानकारों का कहना है कि इस बैठक में उन नेताओं के बारे में भी विचार विमर्श होगा, जो जनाधार वाले हैं, लेकिन पिछला विधानसभा चुनाव जीत नहीं सके हैं। ऐसे नेताओं का उपयोग किस तरह से किया जाएगा। इसके बारे में बैठक में निर्णय लिया जाएगा, जिससे ऐसे नेता पार्टी की मुख्य धारा से जुड़े रहे और उनके प्रभाव का लाभ पार्टी को मिलता रहे।
गौरतलब है कि मप्र में भाजपा चुनाव-दर-चुनाव जीत का रिकॉर्ड बनाती जा रही है। इसके पीछे पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं और नेताओं का सबसे बड़ा योगदान है। ऐसे में मप्र की सत्ता पर काबिज भाजपा अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए दीपावली के बाद भोपाल में बड़ी बैठक करेगी, जिसमें नाराज या असंतुष्ट जनप्रतिनिधियों सहित वरिष्ठ नेताओं को संतुष्ट करने का प्रयास होगा। बैठक में दिल्ली के वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहेंगे। गौरतलब है कि भाजपा की प्रदेश में तकरीबन 20 साल से सरकार है। इस दौरान कई नेता सरकार और संगठन के कामकाज के असंतुष्ट होकर अपनी तरह से बयानबाजी करते रहते हैं। जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो वहीं विपक्ष को मुद्दा भी मिलता है। पिछले कुछ दिनों से अपनों के रूठने के मामलों से परेशान भाजपा ने अब तय किया कि ऐसे नेताओं को मनाने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए उनके साथ बैठकर उनकी मन की बात सुनी जाएगी और उसके निराकरण के प्रयास किए जाएंगे। बताया गया है कि इस बैठक में नवम्बर माह से शुरू हो रही संगठनात्मक चुनाव को लेकर रणनीति पर भी चर्चा की जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इस बार के संगठनात्मक चुनाव पूरी तरह से युवाओं पर फोकस रहेगा। पार्टी की कोशिश रहेगी कि अधिकांश जिलों के संगठन की कमान युवाओं के हाथों पर रहे। ऐसे युवाओं को जिनके द्वारा पार्टी को मजबूत बनाने के लिए लगातार काम किया जा रहा है और उनके द्वारा व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता नहीं दी गई है।

 

गौरतलब है कि प्रदेश में बड़ी जीत मिलने के बाद भाजपा में असंतोष भी बढ़ा है। कई वरिष्ठ नेता भी अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। वे सत्ता और संगठन के खिलाफ लगातार बयान दे रहे हैं। पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें पार्टी और सरकार के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे नेताओं के बारे में संगठन द्वारा गोपनीय तौर पर रिपोर्ट भी तैयार कराई जा रही है कि उनके विरोध की वजह वास्तव में जनता से जुड़े मुद्दों के कारण हैं या फिर व्यक्तिगत कारणों से है। ऐसा बताया गया है कि दिल्ली से आने वाले वरिष्ठ नेता इन नेताओं की पूरी कुंडली लेकर आएंगे, जिसमें उन्हें पार्टी द्वारा कितनी बार आगे बढ़ाया गया, उन्हें कितनी बार टिकट देकर विधायक का चुनाव लड़ाया गया और वे कितनी बार सरकार में मंत्री से लेकर कई महत्वपूर्ण पदों पर बैठे है। बताया जा रहा है कि यदि संबंधित नेता इस बैठक के बाद भी बयानबाजी करते हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनहीनता मानते हुए सख्त कार्यवाही की जाएगी, फिर चाहे कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो। इस संभावित बैठक में ऐसे कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी बुलाया जाएगा, जो लगातार हाशिए पर है, लेकिन उनके द्वारा पार्टी को मजबूत बनाने के लिए अनवरत काम किया गया है। पार्टी ने ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं की भी सूची तैयार कराई है, जिन्हें दीपावली के बाद होने वाली बैठक में बुलाकर सम्मानित किया जाएगा और उनके बारे में विचार होगा कि किस तरह से उनके समर्पण का ईनाम उन्हें दिया जा सके।

 

देखा यह जा रहा है कि प्रदेश में नशाखोरी, अपराध और माफिया के बहाने भाजपा नेता सरकार पर हमला कर रहे हैं। नशे को लेकर पार्टी के विधायक ही शासन और अधिकारियों पर उंगलियां उठा रहे हैं। नए नवेले मऊगंज जिले के इकलौते विधायक प्रदीप पटेल को जिले के युवाओं को नशे से बचाने की गुहार लगाते हुए अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के सामने साष्टांग होना पड़ा। यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी जनप्रतिनिधियों को अफसरों के सामने हाथ जोड़ते देखा गया है। भाजपा के कद्दावर नेता और सूबे के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे हैं। पिछले दिनों पूर्व मंत्री पंडित गोपाल भार्गव ने भी कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े करते हुए शासन प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया था। उन्होंने कहा कि कड़े कानून के बाद भी प्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं। एक और पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक अजय विश्नोई का बयान भी अधिकारियों की कार्यप्रणाली के इर्द-गिर्द है। उन्होंने अपने विधायक प्रदीप पटेल के मामले को सही ठहराते हुए सोशल मीडिया में लिखा कि उनके द्वारा सही मुद्दा उठाया गया, लेकिन क्या करें, पूरी सरकार ही शराब ठेकेदारों के आगे दंडवत है। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय हों, अजय विश्नोई या फिर प्रदीप पटेल, इन जनप्रतिनिधियों के बयान नशाखोरी के खिलाफ थे। यानि कि यदि पार्टी के जनप्रतिनिधि ही इस नशाखोरी को लेकर अधिकारियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं, तो यह माना जा सकता है कि राज्य के अधिकारी इस पर अकुंश लगाने में फिलहाल नकाम हैं, जिसकी वजह से विधायकों को अधिकारियों के सामने साष्टांग होना पड़ रहा है। इसी तरह पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं भी सामने आई हैं, जिसमें रेत माफिया अधिकारी कर्मचारियों को निशाना बनाते देखे गया है। इस पर भी सत्ता और विपक्ष का विरोध सामने आया है। लेकिन जानकार ऐसे मामलों को लेकर अधिकारियों को दोषी ठहराते हैं। उनका मानना है कि खनिज माफिया या रेत माफिया चंद भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से पनपते हैं, जिसकी वजह से माफिया इतने हावी हो जाते हैं कि उन पर अंकुश लगाने वाले उनका शिकार बनते हैं।