भारत चीन और पाकिस्तान से एक साथ हवाई खतरे का सामना कर रहा है, क्योंकि वे अपनी वायुसेना में पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान शामिल कर रहे हैं। ऐसे में भारत भी तेजी से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की तलाश में है, जिसके लिए रूसी सुखोई Su-57 एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

मॉस्को: भारत एक साथ दो मोर्चों पर हवाई खतरे का सामना कर रहा है। चीन और पाकिस्तान तेजी से अपनी वायुसेना में नए लड़ाकू विमानों को शामिल कर रहे हैं। इनमें पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान भी शामिल हैं। चीनी वायुसेना में वर्तमान में पांचवीं पीढ़ी का एक लड़ाकू विमान J-20 ऑपरेशनल है, जबकि J-35 परीक्षण के दौर से गुजर रहा है। वहीं, पाकिस्तान ने भी चीन से पांचवीं पीढ़ी के J-35 को खरीदने का ऐलान किया है। इस बीच भारतीय वायुसेना में सबसे ताकतवर विमान राफेल है, जो 4++ जेनरेशन का माना जाता है। ऐसे में भारत तेजी से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की तलाश कर रहा है। माना जा रहा है कि रूसी रूसी सुखोई Su-57 लड़ाकू विमान भारत के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है। रूस ने भारत को Su-57 के ज्वाइंट प्रोडक्शन का ऑफर भी दिया है।

एसयू-57 से भारत को मिलेगी बढ़त
21 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि रूस ने भारत को अपनी जरूरतों के हिसाब से मोडिफाइड Su-57E लड़ाकू विमान का ऑफर दिया है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या भारतीय वायुसेना Su-57 को शामिल करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसे भारत में निर्मित रडार और मिशन सिस्टम से लैस किया जाता है, तो Su-57E भारतीय वायुसेना को एक महत्वपूर्ण तकनीकी बढ़त प्रदान कर सकता है, जो चीन और कुछ हद तक पाकिस्तान द्वारा विकसित किए जा रहे स्टील्थ और स्टैंडऑफ लड़ाकू विमानों की भरपाई कर सकता है।
 
भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों को जानें
भारत का वर्तमान लड़ाकू बेड़ा मजबूत लेकिन विविधतापूर्ण है, जो चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों- सुखोई Su-30MKI, मिराज 2000, मिग-29UPG, जगुआर और हाल ही में खरीदे गए राफेल के मिश्रण पर बना है। हालांकि, भारत के पास स्टील्थ क्षमता से लैस, नेटवर्क वारफेयर और सेंसर फ्यूजन में सक्षम एक वास्तविक पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान नहीं है। ऐसे विमान एयर सुपीरियॉरिटी मिशन को बेहतरीन तरीके से अंजाम देते हैं। चीन ने ऐसे चार विमानों का निर्माण किया है, जिनमें से दो J-35 और J-36 अभी परीक्षण के दौर से गुजर रहे हैं।

Su-57 कितना शक्तिशाली
रूस के Su-57 फेलॉन का एक्सपोर्ट वेरिएंट Su-57E, स्टेल्थ, सुपरमैन्युवरेबिलिटी, सुपरक्रूज़ क्षमता और डीप स्ट्राइक रेंज जैसी दुर्लभ क्षमताओं से लैस है। ये विशेषताएं तत्काल गुणात्मक लाभ प्रदान करेंगी। भारत के हाथों में, ये विशेषताएं चीन के J-20 जेट और पाकिस्तान के भविष्य के J-35 जैसे खतरों का मुकाबला करने में मदद कर सकती हैं, जिससे लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिमी क्षेत्र में LOC जैसे अत्यधिक विवादित क्षेत्रों में हवाई शक्ति संतुलन बदल सकता है। अगर भारत इस विमान को अपने उत्तम AESA रडार और भारतीय मिशन कंप्यूटरों के साथ इंटीग्रेट करता है, तो एख विशिष्ट प्लेटफॉर्म तैयार कर सकता है।

Su-57 से भारत को क्या लाभ होगा
Su-57 के कम रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) और हथियारों का इंटरनल बे इसे संघर्ष के पहले दिन दुश्मन के प्रमुख बुनियादी ढांचे-एयरबेस, मिसाइल बैटरी, रडार सिस्टम-को लक्षित करने के लिए उसके एयर डिफेंस में घुसपैठ लगाने में मदद करता है। इस तरह की गहरी पैठ वाली स्ट्राइक एक ऐसी क्षमता है जो भारत के पास वर्तमान में स्टील्थ फॉर्म में नहीं है। इसकी सुपरक्रूज़ विशेषता (बिना आफ्टरबर्नर के निरंतर सुपरसोनिक उड़ान) और 3D थ्रस्ट वेक्टरिंग इंजन हवाई मुठभेड़ों में उत्तरजीविता और मनुवरबिलिटी को बढ़ाते हैं, खासकर LAC जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां त्वरित प्रतिक्रिया समय और नजदीकी दूरी की डॉगफाइट्स परिचालन रूप से संभावित हैं।