-नालंदा, विक्रमशिला, ओदन्तपुरीविश्वप्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र थे

-बुद्ध ने महिलाओं को भिक्षुणी संघ बनाकर शिक्षा का अवसर दिया

-उन्नत प्रयोगशाला, सुसमृद्ध पुस्तकालय, शिक्षकों का आदान-प्रदान होता था 

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

बौद्धधर्म-दर्शन एवं मूल्यपरक शिक्षा पर पांच दिवसीय कार्यशाला में विभिन्न बौद्ध शिक्षा केंद्रों के विकास के साथ ही बौद्धाचार्यों के शिक्षा में योगदान पर चर्चा हुई। प्रो. सुष्मिता पांडे ने बताया कि संघ की सहकार भावना से संचालित बौद्ध शिक्षा केन्द्र तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वलभी, जगद्दल और ओदन्तपुरी में लगभग 1200 वर्षों तक शिक्षा की धुरी रहे। प्रो. पांडे के मुताबिक शिक्षा का खर्च समाज उठाता था। नालंदा में 8500 छात्र और 1500 शिक्षक थे और 100 गांवों के कर से खर्च चलता था और 200 गांव के लोग रोजाना भोजन की व्यवस्था करते थे। शिक्षा के प्रसार का उदाहरण इसी से समझ सकते है कि चीनी यात्री ह्वेनसांग कश्मीर में 2 साल रहा और वहां के राजा ने अनुवाद के लिए 20 लिपिक उनको दिये थे। प्रो. पांडे ने बताया कि वज्रयान में स्त्री बुद्ध का भी विवरण मिलता है जिन्हें वज्रिणी, धर्म-वज्रिणी, कर्म-वज्रिणी, वर्ज-योगिनी के नाम से बुलाया गया है। बुद्ध ने महिलाओं को भी अध्ययन करने और भिक्षुणी संघ बनाने की अनुमति दी थी। उन्होंने बुद्ध काल में विक्रमशिला विवि का विवरण देते हुए बताया कि 53 प्रमुख मंदिर, 54 साधारण मंदिर और एक मुख्य मंदिर के साथ 6 सभागार थे जिनके दरवाजे पर विषय विद्वान प्रवेश समिति सदस्य होते थे जिन्हें द्वार पंडित कहा जाता था। शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध थी लेकिन प्रवेश से पूर्व द्वारपंडित को ज्ञान से संतुष्ठ करना होता था। प्रवेश के मानक बहुत कड़े थे और सिर्फ 20 प्रतिशत छात्र ही प्रवेश पाते थे। नागार्जुन, आर्यदेव,  असंग, वसुबंधु, धर्मपाल, धर्मकीर्ति, पद्मसंभव, दीपंकर श्रीज्ञान,मोक्षाकर गुप्त, कुमारजीव जैसे विद्वान पढ़ाते थे। 

कार्यशाला में प्रो.आनंदशंकर सिंह ने बताया कि 700 वर्षों के इतिहास में किसी विश्वविद्यालय में अनुशासन का कोई प्रकरण नहीं मिलना इन अध्ययन केंद्रों की गुणवत्ता और छात्रों की निष्ठा का अपूर्व प्रमाण है। व्यक्तित्व निर्माण पूरी शिक्षा का मूल ध्येय था और संस्कार शिक्षा का आधार था। नालंदा में पहली बार आधुनिक प्रयोगशाला और लाइब्रेरी का उल्लेख मिलता है। साथ ही वाणिज्य एक विस्तृत विषय के रूप में पढ़ाया जाता था।

प्रो. आनंदशंकर सिंह ने बताया कि विक्रमशिला में 8000 लोगों के बैठने का हॉल था जिसकी वास्तुकला इस तरह डिजाइन थी कि बिना लाउडस्पीकर के सभी तक आवाज पहुंचती थी। इसी प्रकार तक्षशिला चिकित्सा का भी बड़ा केन्द्र था जहां जीवक जैसे विद्वान ने पढ़ाई की थी। कौटिल्य और पाणिऩी के भी यहां से शिक्षा ग्रहण करने का उल्लेख मिलता है। सभी विश्वविद्यालय में शिक्षकों का आदान-प्रदान होता था और अलग-अलग विहार में अलग विशेषज्ञता के लोग रहते थे।

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28