सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। IND28.COM

वट सावित्री व्रत की पूजन शुक्रवार को की जाएगी। पंडित अरुण शास्त्री सांचेत बालों ने बताया कि इस विधि से करें वट सावित्री व्रत, होगी मनोकामना पूरी, बढ़ेगी पति की आयु। इस बार 19 मई को यह पर्व सुहागिन महिला मनाएगी। उस दिन से 2 दिन पूर्व अर्थात 17 तारीख को ही स्नान करके शुद्ध हो जाएंगी सुहागिन महिला। पंडित शास्त्री के अनुसार पूजन विधि सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री का पर्व काफी महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इस दिन सुहागिन महिला वटवृक्ष के नीचे सावित्री की प्रतिमा बनाकर पूजा करती हैं। ऐसा इसलिए करती हैं कि सावित्री अपने पति की दीर्घायु के लिए ईश्वर से वरदान प्राप्त की थी। यही कारण है कि सुहागिन महिला पूरे साज सज्जा के साथ वटवृक्ष के नीचे पूजा पाठ करती हैं। तत्पश्चात अपने पति की सेवा और सदा सुहागन होने का आशीर्वाद लेती है।

गुड़ का भोज लगाना माना गया है विशेष----- इस पर विशेष जानकारी देते पंडित अरुण शास्त्री ने बताया कि वट वृक्ष के तले में सावित्री की प्रतिमा बनाया करती हैं। सावित्री का पूजन करने का विधान है। इस दिन और वहां सावित्री को कई प्रकार से नैवेद्य उसमें खास करके चना जो अंकुरित चना हो उसका विशेष महत्व होता है। साथ में शक्कर जिसे गुड़ कहते हैं उसका भोग लगाना विशेष माना गया है।

19 को है व्रत, 17 से विधि विधान शुरू----- 

इस बार 19 मई को यह पर्व सुहागिन महिला मनाएगी. उस दिन से 2 दिन पूर्व अर्थात 17 तारीख को ही स्नान करके शुद्ध हो जाएंगी सुहागिन महिला। एक मुक्त कर, दूसरे दिन फलाहार भोजन करेगी। फिर तीसरे दिन जिसे त्रिरात्र माना गया है। उस दिन वटवृक्ष के नजदीक जाकर सावित्री की प्रतिमा निर्माण करके वहां पूजा की जाती है। खास करके मिथिलांचल में जितनी भी नवविवाहिता है, वह वट मूल के नजदीक जाकर अपने वर स्वरूप में वट वृक्ष को मानकर उनका पूजन करती हैं और मिठाई अर्पण करती हैं।

उस दिन वट पत्र जिसे तुसी कहा जाता है----- 

उसे खाने का विशेष महत्व होता है वैसे महिलाएं आशीर्वाद स्वरुप अपने माथे पर वट वृक्ष के पत्ते भी रखती हैं। उसके बाद घर आकर अपने स्वामी की पद व क्षण करती हैं। वही बात से निर्मित पंखे से उन्हें हवा हांकती है। अपने पति से ज्यादा सुहाग वती होने का आशीर्वाद प्राप्त करती है। इस रोज वट सावित्री कथा सुनने का विशेष महत्व होता है।

न्यूज़ सोर्स : IND28.COM