साँची यूनिवर्सिटी में मनाई गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती
-स्वामी विवेकानंद पर भाषण के लिए सुभाष बाबू को मिला था प्रथम पुरस्कार
-सिंगापुर में स्वतंत्र भारत का ध्वज फहराया था सुभाष चंद्र बोस ने
अदनान खान सलमतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 129वीं जयंती मनाई गई। भारतीय चित्रकला विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दर्शन के विद्यार्थी थे। सुभाष चंद्र बोस ने आई.सी.एस की परीक्षा पास करने के बाद देश की आज़ादी की खातिर अंग्रेज़ों की नौकरी को ठुकरा दिया और मुंबई में गांधी जी से मिलने के बाद स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए कांग्रेस से जुड़ गए। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने सुभाष चंद्र बोस के जीवन और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 15 वर्ष की उम्र में सुभाष बाबू को स्वामी विवेकानंद पर भाषण देने के कारण प्रथम पुरस्कार मिला था। उन्होंने स्वराज पार्टी के गठन और बाद में उसके कांग्रेस में विलय हो जाने का भी ज़िक्र किया। रमेश शर्मा ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस अहिंसा, क्रांति और सैन्य बल....तीनों ही तरीकों से आंदोलन कर भारत को आज़ाद कराना चाहते थे। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन का चिंतन सुभाष बाबू के जीवन में मिलता है। कार्यक्रम में इतिहास संकलन समिति, मध्यप्रदेश के संगठन मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिए गए नारे ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ पर लिखी कविता पढ़कर सुनाई। विशिष्ट अतिथि के रूप में राजीव लोचन चौबे भी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।
साँची विवि के कुलगुरु प्रो. लाभ ने भारत की आज़ादी के लिए जर्मनी के तानाशाह हिटलर के साथ सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात के प्रसंग का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि मुलाकात के लिए हिटलर के दफ्तर के बाहर सुभाष बाबू इंतज़ार कर रहे थे तब हिटलर के 05 बहुरूपिए उनके सामने भेजे गए लेकिन उन्होंने बता दिया कि वो बहुरूपिए हैं। आखिरी में हिटलर उनसे मिलने दफ्तर से बाहर आये तो सुभाष चंद्र बोस ने बताया कि पहले आए पांचों लोगों ने उनसे हाथ मिलाने के लिए पहले हाथ आगे बढ़ाया था, जिससे उन्होंने पहचाना कि वो बहुरूपिए हैं, जबकि हिटलर ने उनसे मिलने के लिए पहले हाथ नहीं बढ़ाया था।
कुलगुरु प्रो लाभ ने बताया कि नेताजी ने कांग्रेस के नरम दल की विचारधारा को ठुकराते हुए फॉरवर्ड ब्लॉक या आज़ाद हिंद फौज का गठन किया और इम्फाल से सैनिकों को लेकर आगे बढ़ते हुए सिंगापुर में स्वतंत्र भारत का ध्वज फहराया था। नेताजी के संदर्भ को लेते हुए प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि आज आवश्यकता है कि लोग आत्मकेंद्रित होने की बजाए समाज और देश के लिए नेताजी की तरह सोचें।
कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण कुलसचिव, अधिष्ठाता व अंग्रेज़ी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन कुमार मेहता ने दिया। उन्होंने नेताजी के आई.सी.एस के साक्षात्कार का जिक्र करते हुए कहा कि कैसे अंग्रेज़ अफसरों ने इंग्लैंड में नेताजी से इंटरव्यू के दौरान पूछा था कि छत पर चल रहे बिजली के पंखे में कितनी पंखुड़ियां हैं इस पर नेताजी ने पहले पंखा बंद किया और पंखुड़ियां गिनकर बता दीं। इस पर भारतीयों से चिढ़ने वाले अंग्रेज़ों ने उनका चयन प्रशासनिक अफसर के तौर पर कर लिया। कार्यक्रम का समन्वय भारतीय चित्रकला विभाग की विभागाध्यक्ष व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुष्मिता नंदी ने किया। कार्यक्रम में भारतीय चित्रकला विभाग की छात्रा पूजा यादव ने वंदेमातरम, खुदीराम बोस पर बांग्ला कविता और नेताजी पर लिखा एक गीत सुनाया। कार्यक्रम के दौरान नेताजी के 15 मिनट के ओरिजनल वीडियो फुटेज भी प्रदर्शित किए गए जिसमें उनके भाषण के अंश थे। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन भारतीय दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नवीन दीक्षित ने किया। कार्यक्रम का मंच संचालन भारतीय चित्रकला विभाग की छात्रा अंकिता गांगुली ने किया।