ऑरसिड कार्यशाला के लिए चुना गया सलामतपुर स्तिथ सांची विश्वविद्यालय
-आई.आई.टी दिल्ली के प्रशिक्षणकर्ता दे रहे हैं प्रशिक्षण
-सांची विश्वविद्यालय में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन
-डी स्पेस, ऑरसिड, जीपीएफ के बारे में जाना
-अन्य राज्यों और प्रदेश के विवि के 50 प्रतिभागी ले रहे हैं प्रशिक्षण
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आज ऑरसिड, जीपीएफ विषय पर आईआईटी दिल्ली के सहयोग से दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। आई.आई.टी दिल्ली द्वारा पूरे मध्य प्रदेश में मात्र सांची विश्वविद्यालय को इस प्रशिक्षण कार्यशाला के लिए चयनित किया गया है। इस कार्यशाला में देश के अन्य राज्यों और प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों से प्रशिक्षण लेने के लिए लगभग 50 कर्मचारी, शोधार्थी और लाइब्रेरी विभाग से संबंधित प्रतिभागी सांची विश्वविद्यालय पहुंचे हैं। यह कार्यशाला 24 सितंबर तक चलेगी। ऑरसिड जीपीएफ का अर्थ है ओपन रिसर्चर एंड कॉन्टीब्यूटर आईडी ग्लोबल पार्टनरशिप फंड। आई.आई.टी दिल्ली के लाइब्रेरी विभाग के सहायक लाइब्रेरियन तथा ऑरसिड के प्रमुख इनवेस्टीगेटर डॉ. मोहित गर्ग और उनके सहयोगी भावेश वैद्य ने प्रतिभागियों को डी स्पेस 7 के बारे में जानकारी दी।
ऑरसिड के माध्यम से प्रत्येक शोधार्थी अपनी यूनीक आईडी तैयार कर अपनी शोध को विभिन्न डिजिटल माध्यमों तथा ई लाइब्रेरी व शोध पुस्तिकाओं को भेज सकेगा। इस यूनीक आईडी से अनेक शोधार्थियों के नाम से उतपन्न होने वाले भ्रमों और संदिग्धताएं दूर हो सकेंगीं।
डॉ. गर्ग ने बताया कि डी-स्पेस के माध्यम से विभिन्न विश्वविद्यालय व अन्य शोध संस्थान अपने शोधार्थियों के रिसर्च पेपरों, थीसीस, रिसर्च आर्टिकल्स, संस्थान के न्यूज़लैटरों इत्यादि को डिजिटल रूप में ऑरसिड यूनिक आई.डी के साथ अपलोड कर रिपॉज़िटरी तैयार कर सकेंगे। इसके लिए संस्थान अपने स्वयं के सर्वर अथवा क्लाउड का उपयोग कर यह सुविधा प्रदान करेंगे।कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी ने कहा कि संस्थानों को चाहिए कि वो रिपॉज़टरी की बजाए रिज़रवॉयर तैयार करें अर्थात बड़े पैमाने पर इस पर डिजिटल मटीरियल रखा जाए ताकि पूरे विश्व के लोग इसका लाभ उठा सकें। उन्होंने कहा कि दुनिया भले ही पुस्तकों को डिजिटल रूप में कर रही है लेकिन आज भी किताबों को हाथ में लेकर पढ़ने का महत्व घटने की बजाए बढ़ गया है। इसलिए पारंपरिक लाइब्रेरियों का अपना महत्व है। इस दौरान डॉ. गर्ग ने बताया कि वर्ल्ड बैंक के माध्यम से ऑरसिड आई.डी बनाने के लिए 2022 ग्लोबल पार्टिसिपेशन फंड की स्थापना की गई। आई.आई.टी दिल्ली भारत में इसके लिए संस्थानों को चिन्हित कर रहा है। विश्वविद्यालय के डीन डॉ. नवीन मेहता ने कहा कि छात्रों के साथ-साथ भी शोध स्मार्ट हो रही है इसलिए स्मार्ट लाइब्रेरियों की ज़रूरत बढ़ रही हैं और इसलिए ऑरसिड आई.डी की भी आवश्यकता है। विश्वविद्यालय के सहायक लाइब्रेरियन डॉ. अमित ताम्रकार ने भी लोगों को इसके विषय में जानकारी दी। कार्यशाला के प्रथम दिवस प्रतिभागियों को बताया गया कि रिपॉज़िटरी की ज़रूरत क्यों है और कैसे ये सॉफ्टवेयर कार्य करता है। तीसरे टेक्निकल सेशन में बताया गया कि डीस्पेस के माध्यम से रिपॉज़िटरी कैसे तैयार होगी। कैसे बैकएंड और फ्रंटएंड तैयार किया जाएगा। प्रथम दिवस कार्यशाला के अंत में क्विज़ का भी आयोजन किया गया तथा तत्काल प्राइज़ दिए गए। कार्यशाला के द्वितीय व अंतिम दिवस प्रतिभागियों को यह बताया जाएगा कि डीस्पेस कैसे बनाएं और उसे कस्टमाइज़ कैसे करें। इसके अलावा ऑरसिड तथा उसके उपयोग, ऑरसिड जीपीएफ व ए.पी.आई की आवश्यकता क्यों है इससे भी प्रतिभागी प्रशिक्षित होंगे। अंतिम दिन भी क्विज़ का आयोजन किया जाएगा।