संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के समापन पर जरासंध वध सुदामा चरित्र का प्रसंग सुनाया
सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
कस्बा सांचेत में तिवारी परिवार के निवास पर चल सही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के समापन पर कथावाचक पं. पीलेश कृष्ण शास्त्री द्वारा भागवत कथा के अंतिम दिन ग्रामीण अंचलों से आए हजारों श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण किया। फूलों की होली का भगवान श्री कृष्ण ने अपनी गोपियों के साथ जमकर होली खेली भगवान श्री कृष्ण विवाह, सुदामा चरित्र, विदुर चरित्र, 24 गुरुओं की कथा, जरासंध वध, राजसूर्य यज्ञ ठाकुर जी का स्वधामग गमन, राजा परीक्षित का मोक्ष, फूलों की होली और कथा का विराम, व्यास पूजन और पूर्णाहुति हवन हुआ। कथावाचक पं, पीलेश कृष्ण शास्त्री ने श्रीमद भागवत कथा की महिमा और मनुष्य के सभी पापों को नष्ट और तारने वाली कथा बताई। भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता का संगीतमय वर्णन किया। मंच से कलाकारों ने सुदामा चरित्र का सजींव चित्रण किया। कथा के दौरान श्रद्धालुओं ने जय- जय रणजीत हनुमान के जयघोष लगाए। कथा के श्रवण मात्र से ही मनुष्य के जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है।जरासंध महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश थे। सम्राट जरासंध ने बहुत से क्रूर राजाओं को अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा था। पर उन्होंने किसी को भी मारा नहीं था, मगध सम्राट जरासंध जी महाराज महादेव का बहुत बड़ा भक्त थे ,वो ब्राह्मणों की बहुत आदर करता थे,काफी दान पूर्ण करता था,वचन के भी काफी पक्के थे सम्राट जरासंध वह मथुरा के यदुवँशी नरेश कंस का ससुर एवं परम मित्र थे उसकी दोनो पुत्रियो आसित एव्म प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने १७ बार मथुरा पर चढ़ाई की लेकिन जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़ कर भागना पड़ा फिर वो द्वारिका जा बसे, तभी उनका नाम रणछोड़ कहलाया। जरासंध जी महाराज श्री कृष्ण के परम शत्रु और चन्द्रवँशी क्षत्रिय समाज के सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे। तत्कालीन भारतवर्ष के चन्द्रवँशी क्षत्रिय वँश के मगध सम्राट जरासन्ध जी महाराज ऐसे इकलौते सम्राट थे जिन्होंने पूरे विश्व पर मगध का शासन स्थापित किया था, उनके वंशजों ने उनकी हत्या के बाद भी लगभग 1000 वर्षों तक कुशलतापूर्वक शासन किया।