-वीर रस, प्रेम, मां और हास्य पर कविता पाठ

-नीतेश व्यास, रूद्र प्रताप रूद्र, अनूप धामनेय ने किया कविता पाठ

-विश्वविद्यालय के छात्र सुमित और योगेंद्र ने भी ओजरस की कविताएं सुनाई

अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

कस्बा सलामतपुर स्तिथ साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में युवा कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।  युवा कवियों ने ओज, प्रेम, हास्य और सामाजिक परिस्थियों पर ऐसी कविताएं पढ़ीं कि छात्रों, कर्मचारियों, शिक्षकों के साथ-साथ कुलपति-कुलसचिव भी वाह-वाह किए बिना नहीं रह सके। हिंदी पखवाड़े पर हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस युवा कवि सम्मेलन में नीतेश व्यास,रूद्र प्रताप रूद्र, अनूप कुमार धामनेय, सुमित सिंह और योगेंद्र सिंह को पूरी गर्मजोशी से सुना। खास बात ये है कि सुमित और योगेंद्र सांची विश्वविद्यालय के ही छात्र हैं और कविता पाठ के क्षेत्र में इन दिनों देश-प्रदेश में अपना स्थान बना रहे हैं। सभी ने मिलकर कहकहे और ठहाके भी लगाए और हर एक को अपने जवानी के दिन याद आ गए। विश्वविद्यालय में आज देश के उभरते कवियों ने साबित कर दिया कि हिंदी कविताएं गुम नहीं हुई हैं और ये नौजवान इसे संजो रहे हैं संवार रहे हैं। देश के उभरते हुए कवि, रीवा से आए रूद्र प्रताप रूद्र ने अपनी ओजपूर्ण कविताओं के ज़रिए साबित कर दिया कि वो उभरते हुए भारत की नई तस्वीर हैं। उन्होंने वीर रस पर, जातिवाद पर, सामाजिक विषयों पर और खेती-किसानी के विषयों पर जो पढ़ा उसने पूरे सभागार को भावुक कर दिया। बैतूल से आए अनूप कुमार धामनेय प्रेम भाव पर केंद्रित रहे। इसके अलावा उन्होंने मां और मोबाइल पर अपना काव्य पाठ कर सभागार में उपस्थित हर एक श्रोता को बांध लिया। उनकी सुरीली और खनकती आवाज़ पर पढ़ी जा रही कविताओं पर पूरा हॉल साथ में तालियों के ज़रिए लय मिला रहा था।रायसेन के रहने वाले और देश विदेश में इन दिनों बड़ी फैन फॉलोइंग बना रहे युवा कवि नीतेश व्यास ने अपने व्यंग बाणों के ज़रिए दर्शकों के मन-हृदय को भेदा, उन्हें गुदगुदाया। उन्होंने देश में पिछले दिनों सुर्खियों में रही छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी घटनाओं की अपने शब्दों के ज़रिए भरपूर भर्त्सना की, कि श्रोता दाद देने से खुद को रोक नहीं पाए......आखिर कवि इस भाषा में भी घटनाओं को बयान कर सकते हैं। उन्होंने बाखूबी अपनी गज़ल को प्रस्तुत किया कि लोग हैरान थे कि युवा कवि और साहित्यकार इस स्तर का भी सोच सकते हैं।

विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के छात्र सुमित सिंह ने शौर्य और पराक्रम पर लिखी अपनी कविताओं के माध्यम से पूरा हॉल को गर्मा दिया। विश्वविद्यालय के ही अंग्रेज़ी विभाग के ही एक छात्र योगेंद्र सिंह ने भी ओज पर अपनी कविताएं सुनाई। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ और कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी ने युवा कवियों की भरपूर सराहना की और बधाई दी। उन्होंने कामना की कि ये युवा देश के शीर्ष स्तर के कवि बन सकें। 

विश्वविद्यालय के यूट्यूब चैनल पर पूरा कवि सम्मेलन देखा जा सकता है।

रूद्र प्रताप रूद्र की कविता-----

गेहूं और धान का फर्क

दृष्टि को उजाड़-उजाड़ ही दिखता है सिर्फ

दिखते हैं टूटे से मकान सूनसान से

छोड़-छोड़ भागते ज़मीन सोच के भविष्य 

आग ही लगा रहे हैं लोग वर्तमान में

खानदान भूलते हैं भावना विहीन होके 

हीन होके बोलते हैं माटी की ज़बान में

टूटने लगे हैं गांव, ठांव के बुझे अलाव

धूप सेंकते हैं पांव, छांव के निशान में

भाव जो ज़मीन से जुड़ाव का रहा सदैव

छोड़ ही दिया है वो कहीं किसी जहान में 

पीढ़ी ये पढ़ी लिखी तो ज़्यादा हो चुकी है मगर

माटी से ममत्व का है तत्व नहीं ज्ञान में

तो थाल में सजा सजाया अन्न फांक लेती सिर्फ

झांकने न जाती कभी खेत-खलिहान में

देश में विशेष एक ऐसी भी प्रजाति है

जो फर्क जानती है नहीं गेहूं और धान में

अनूप कुमार धामनेय की कविता

बेटे का टिफिन----

पानी के संग बोतलों में प्यार रखे है

टिफिन में मां ने सब्ज़ी और अचार रखे हैं

मैंने कहा उसे कि पराठे वो दो रखे

गिनती में कच्ची है देखो चार रखे हैं

योगेंद्र सिंह की कविता-.....

मां के नाम सैनिक की चिट्ठी

कठिन है समय, कठिन है ये राह

वतन की खातिर देख लो मैं लड़ रहा यहां

चल रही हैं गोलियां रणक्षेत्र का ये दौर है

कुरुक्षेत्र वाले दौर का ये नया सा रण है

द्रौपदी है गलवान, चीन दुशासन है

कृष्ण है भारत और हर सैनिक है अर्जुन यहां

दिख रहे हैं शिशुपाल, चलते हुए अपनी चाल

उनका संहार करना है पहला धर्म यहां

शत्रुओं की है ये चाल वो चक्रव्यूह रचाएंगे

उनकी सोच है हम अभिमन्यू बन जाएंगे

पर उन्हें नहीं पता रण के इस दौर में , 

हर सैनिक बना है अर्जुन मां भारती के छोर में

बंदूकों में उतार लिया है अर्जुन के गांडीव को

हाथ न लगा। 

सुमित सिंह की कविता......

मां भारती की जय

यूं ही नहीं लिखी बलिदान स्वाभिमान की प्रथा

यूं ही नहीं लिखी मैंने महान हिंदुस्तान की कथा

पिता देते हैं बुढ़ापे का सहारा

तो मां आंखों का नूर देती है

और बहन देती है हाथ की कलाई 

तो पत्नी मांग का सिंदूर देती है

क्या क्या कहूं वीरता की निशानियां बहुत हैं

पराक्रम और शौर्य की कहानियां बहुत हैं

युद्ध के साथ-साथ यहां बुद्ध के भी पक्ष थे

सिर्फ वीरता ही नहीं हम ज्ञान में भी दक्ष थे

सबसे ज़्यादा थी संजीवनी यहां किसी भी होग को

गर्व करो हमने जीवित किया शास्वत योग को

यहां भूमि है राम संघर्ष के सारथी राम बनवास की

यह भूमि है चरक की यह भूमि है कालिदास की

न तंत्र से मिला है गौरव न मंत्र से मिला है

न तपस्या से मिला है न षणयंत्र से मिला है

हम कल भी थे अजेय हम आज भी अजेय हैं

क्योंकि मां भारती की जय है

नीतेश व्यास की गज़ल

मेरा तजुर्बा....

अपनी-अपनी शतरंज में

चलते चाल सयाने लोग

अकसर धोखा दे जाते हैं 

जाने और पहचाने लोग

किसी को अपने दिल में रख लो

किसी को शक के घेरे में

बदल-बदल कर आ जाते हैं

चेहरे वही पुराने लोग

दिल को समझो परखो देखो

चेहरे धोखा देते हैं

कहता हूं मैं अपना तजुर्बा

मानें या न मानें लोग

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28