अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)

साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में नव नालंदा महाविहार पर निर्मित वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया। नव नालंदा महाविहार की स्थापना से लेकर वर्तमान स्वरूप में आने की यात्रा को बहुत विश्वसनीय एवं साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत किया गया। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 नवंबर, 1951 को नव नालंदा महाविहार की नींव रखी थी और आज यह बौद्ध दर्शन, पालि भाषा और बौद्ध अध्ययन के क्षेत्र में विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय के रुप में विकसित तथा परिणत हो चुका है। वृत्त चित्र के प्रदर्शन के पूर्व सांची विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने नव-नालंदा महाविहार की महत्ता और ऐतिहासिकता पर जानकारी दी। प्रो वैद्यनाथ लाभ नव नालंदा महाविहार के पहले नियमित कुलपति नियुक्त हुए थे। उनके पूर्व नव नालंदा महाविहार में निदेशक हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि बिहार के नालन्दा में प्राचीन महाविहार के भग्नावशेष से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्तवंश के कुमारगुप्त प्रथम के कार्यकाल मे 5वीं सदी में की गई थी। इससे पूर्व बिहार और आसपास के क्षेत्रों में भी बौद्ध विहार हुआ करते थे, लेकिन कुमारगुप्त ने संगठित रूप से व्यवस्थित विश्वविद्यालय की स्थापना प्रायः 426 ई. में की थी। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में बौद्ध विद्या तथा भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए आये चीनी यात्री श्वेनसांग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। उसके अनुसार यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 1,500 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7 वीं शताब्दी में यहाँ जीवन के कई महत्त्वपूर्ण वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था।प्रो. लाभ ने बताया कि नालंदा के आसपास विक्रमशिला(वर्तमान में भागलपुर के निकट स्थित), ओदंतपुरी(वर्तमान में बिहार शरीफ में स्थित), तेल्हाड़ा में खोजा गया तिलाढक और पश्चिम बंगाल में सोमपुर-जगद्दल इत्यादि महाविहार विकसित थे।

वृत्त-चित्र में बताया गया कि पांचवी सदी में नालंदा पहला--विश्वव्यापी (कॉस्मोपॉलिटेन) विश्विद्यालय हुआ करता था जहां पर एशिया और विश्व भर से पढ़ने के लिए छात्र आते थे। इस वृत्त चित्र में यह भी बताया गया कि 1954-56 में म्यांमार में छठी बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था जिसके आधार पर 41 भागों में देवनागरी लिपि में पालि त्रिपिटक तैयार करवाया गया। नव नालंदा विश्वविद्यालय के पास उस काल की अनेक भाषाओं की पांडुलिपियाँ संरक्षित हैं। आज नव नालंदा महाविहार एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में अपने विशिष्ट कार्यों से दुनियाभर के शोधार्थियों और छात्रों को आकर्षित कर रहा है।

न्यूज़ सोर्स : अदनान खान एडिटर इन चीफ IND28