दीपावली पर मिट्टी की लक्ष्मी जी और मिट्टी के दिए जलाएंगे सांचेत के ग्रामीण
सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। (IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
मिट्टी की लक्ष्मी जी की मूर्ति ओर मिट्टी के दीयों का धार्मिक महत्व है। कस्बा सांचेत के निवासी मिट्टी की लक्ष्मी की मूर्ति की पूजन करेंगे और मिट्टी के ही दीपक जलाएंगे। इस वर्ष कुम्हारों को उम्मीद है कि इस दिवाली मिट्टी के दीयों से घर-आँगन रोशन होंगे और मिट्टी की लक्ष्मी मूर्ति भी हर घर घर होगी। इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे मां लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति की पूजन होगी। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है। इसी प्रकार मां लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति की पूजन करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है
दीपावली गुरुवार को हैं। इसी के साथ ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। गाँवों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली पर इस बार लोगों के घर आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे मां लक्ष्मी की मूर्ति उनके कारोबार को दोबारा दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे।
दरअसल पिछले वर्ष चीन के साथ तनाव को देखते हुए सोशल मीडिया पर जमकर चीनी उत्पादों के खिलाफ अभियान चला था। जिसमें दिवाली के मौके पर चाइनीज झालरों के बहिष्कार की भी बात थी। वहीं पीएम मोदी के 'वोकल फार लोकल' की अपील का भी लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा और दिवाली के मौके पर दीयों की बिक्री भी जमकर हुई थी। ऐसा लग रहा है कि 'वोकल फॉर लोकल' की अपील का असर इस बार भी लोगों के बीच दिख रहा है और लोग चायनीज झालरों के बजाय मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, इससे कुम्हारों में बेहद खुशी है।
फिर मिलेंगे दीया और बाती
आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों के कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है। कुम्हारों का कहना है पहले लोग पूजा पाठ के लिए सिर्फ 5, 11 या 21 दीये खरीदते थे। मगर पिछली दिवाली में लोगों ने 10 से 12 दर्जन दीये खरीदे थे। इस बार की दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद हैं कि इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे।
छोटेराम प्रजापति सांचेत ने बताया हमारे द्वारा बनाई हुई मां लक्ष्मी की मूर्ति हर घर घर घर एक मूर्ति जरुर जाती है लोग उस प्रतिमा की पूजन करते है और मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है
विशाल प्रजापति सांचेत ने बताया
हमारे द्वारा मां लक्ष्मी की मूर्ति दूर दूर तक जाती है जैसे बरेली बाड़ी सुल्तानपुर रायसेन देवनगर गेरतगंज भोपाल हमारे द्वारा गणेश प्रतिमा बनाने के बाद 40 दिन तक मां लक्ष्मी की प्रतिमा और दीपक बनाएं जाते है
जगदीश प्रजापति सांचेत ने बताया
की पहले से ज्यादा अब सुबिधा हो गई है पहले दीपक बनाने में हाथ से चाक चलाया जाता था और मां लक्ष्मी जी का कलर भी हाथ से किया जाता था लेकिन आज कल तो इलेक्ट्रिक जमाना आ गया है तो ज्यादा से ज्यादा काम हो जाता है जिससे हमारे दीए और मां लक्ष्मी की प्रतिमा का कारोबार हम रायसेन जिले की तहसील सहित भोपाल तक करने लगे है
अशोक प्रजापति सांचेत ने बताया
पटरी पर लौटी कुम्हार की कला
चाक की तेजी का असर ये है कि बाजार में भी मिट्टी के दीये बिकने के लिए पहुंच गए हैं और लोगों ने अभी से दीयों की खरीदारी भी शुरू कर दी है। चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। मगर पिछले दो वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया और एक बार फिर गाँव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने, दियाली, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की माँग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल गए।
लालू प्रजापति सांचेत बताते है
इको-फ्रेण्डली
मिट्टी से निर्मित मूर्तियां, दीये व खिलौने पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है। दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलती है मजबूती
गाँव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहाँ पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गाँव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनमें से ग्रामीण कुम्हारी कला भी एक रही है, जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा।
कान्हा प्रजापति सांचेत बताते है
गाँव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहाँ पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गाँव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनमें से ग्रामीण कुम्हारी कला भी एक रही है, जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा।
पंडित अरुण शास्त्री सांचेत बताते है
दीयों का धार्मिक महत्व
हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। ओर मिट्टी की लक्ष्मी जी को मूर्ति की पूजन करने से घर में सुख शांति बनी रहती है और मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है और मिट्टी का दीपक मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है।