छपरई अंडर पुलिया में भरा पानी, मजबूरी में ग्रामीण और स्कूली बच्चे जान जोखिम में डालकर पार कर रहे पटरियां

-10 गांवों के हज़ारों ग्रामीण रोज़ जान जोखिम में डालकर कर रहे हैं रेलवे लाइन क्रॉस
-बड़ी अनहोनी के इंतजार में आँखे बंद कर बैठे हैं ज़िम्मेदार अधिकारी,शासन प्रशासन भी नही दे रहा ध्यान
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
रायसेन जिले के सांची विकासखंड के अम्बाडी केमखेड़ी मार्ग पर स्तिथ छपरई रेलवे अंडर पुलिया की हालत ने ग्रामीणों की जिंदगी को दूभर बना दिया है। करीब 10-12 साल पहले रेलवे गेट बंद होने के बाद बनाए गए अंडरपास में बारिश का पानी भर जाता है, जिससे ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर रेलवे लाइन पार करनी पड़ती है। स्कूली बच्चों से लेकर किसानों तक, सभी इस समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन प्रशासन के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। सुबह-सुबह स्कूल जाने वाले बच्चों को रेलवे पटरी पार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। हर रोज डर लगता है कि कहीं ट्रेन न आ जाए, एक छात्रा ने बताया। अंडरपास में पानी भरा होने के कारण बच्चों को जोखिम उठाकर रेलवे पटरियां क्रॉस करना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार तो बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई सुध नहीं हुई। वही एक बच्चे ने दबी जुबान में कहा कि क्या करें पुलिया में पानी भरा है लाइन पार किए बिना स्कूल पहुंचना मुमकिन नहीं। रेलवे पटरियों के उस पार खेत होने के कारण किसानों को भी भारी परेशानी हो रही है। हार्वेस्टर तो दूर, ट्रैक्टर तक नहीं ले जा पाते," एक किसान ने बताया। कुछ लोग मोटरसाइकिल को पटरी पर से उठाकर ले जाते हैं, लेकिन यह तरीका भी खतरनाक साबित हो चुका है। उनका कहना है कि जिनके खेत पास में है वह रेलवे लाइन के पास ही मोटरसाइकिल खड़ी कर कर चले जाते हैं मगर दूरी वाले किसानों को मजबूरी में रेलवे लाइन पर से ही मोटरसाइकिल ले जाना पड़ता है कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। ग्रामीणों ने कई बार रेलवे गेट को दोबारा खोलने या अंडर पुलिया की मरम्मत की मांग की है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
10 गांवों के हज़ारों ग्रामीण रोज़ डालते हैं जान जोखिम में---सांची जनपद के छपराई गांव रेलवे की पुलिया में बरसात के समय पानी भरा होने के कारण लगभग 10 गांवों के स्कूली बच्चों सहित किसानों को जान जोखिम में डालकर ट्रेनों की पटरी से होकर गुजरने के लिए मजबूर होना पड़ता है। पुलिया में पानी भरा हुआ है। मरीजों को भी इसी मुसीबत से दो चार होना पड़ रहा है।मुसीबत झेल रहे लोगों का कहना है कि 4 साल से विधायक मंत्री और रेल अफसरों से मिल रहे हैं। लिखित शिकायत दे रहे हैं। कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ग्रामीणों ने बताया कि पहले यहां पर रेलवे गेट हुआ करता था। वहां से आसानी से निकल जाते थे। और खेती किसानी करने वाले ट्रैक्टर इस पार से उस पार चले जाते थे। अब आलम यह है कि रेलवे ने बरसों पुराने गेट को बंद कर दिया है। जिससे खेती किसानी करने वाले किसानों सहित स्कूली बच्चे जान जोखिम में डालकर निकलने को मजबूर हैं। बारिश के समय पर खाद बीज ले जाने के लिए ट्रैक्टर पटरी के उस पार नहीं जा पाता है। जिससे मजदूरों द्वारा खाद बीज कंधे पर रखकर भेजा जाता है। जिससे खाद बीज से ज्यादा पैसा मजदूरों को देना पड़ता है। रेलवे की अंडर पुलिया में बरसात में 4 महीने तक पानी भरा रहता है।और इसके अलावा कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं है। जिससे मजबूरी में रेलवे लाइन क्रास करके निकलना पड़ता है।
इनका कहना है।
हमको इस गांव से दूसरी तरफ जाने के लिए प्रतिदिन इन रेलवे लाइनों को पार करके जाना पड़ता है। बारिश होने की वजह से रेलवे पुलिया में भी पानी भर गया है। इसके अलावा जाने का कोई और रास्ता नही है। कई बार हम ट्रेन की चपेट में आने से भी बच चुके हैं।
भगवान सिंह, स्थानीय ग्रामीण।
हम प्रतिदिन 7 किलोमीटर चलकर जाते हैं। रास्ते में हमें रेलवे लाइन क्रास करके जाना पड़ता है। जिसमें बहुत खतरा रहता है। लेकिन हमें काम से जाना पड़ता है इसलिए हम रोज़ खतरा मोल लेते हैं।
रूप सिंह, ग्रामीण।
में 11 वी कक्षा में पड़ता हूं। स्कूल खुलने के बाद मुझे गांव से 7 किलोमीटर दूर स्कूल पड़ने जाता हूं। मुझे प्रतिदिन जान जोखिम में डालकर रेलवे लाइन पार करना पड़ती हैं। सरकार ने अंडरब्रिज बनाया है लेकिन उसमें भी पानी भरा रहता है।
सूरज, छात्र कक्षा 11वी
8 से 10 गांवों के हज़ारों ग्रामीणों को प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डालकर रेलवे लाइन क्रास करके दूसरी और जाना पड़ता है। और तो और हमें अपने वाहन भी रेलवे की पटरियों और पानी भरे हुए पुलिया से ले जाना पड़ते हैं। अगर गांव में कोई बीमार हो जाता है तो बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है। शासन प्रशासन हमारी समस्या का कोई भी समाधान नही कर रहा है।
रमेश प्रजापति, स्थानीय किसान।