सतीश मैथिल सांचेत रायसेन। IND28.COM

क्षेत्र में 6 जून से 21जून तक योग शिविर लगाया जा रहा है। जो की प्रतिदिन श्रीराम जानकी मंदिर पर सुबह 5 बजे से प्रारंभ होगा। योग गुरु ब्रजमोहन सेन द्वारा ने कहा कि शिविर में जो आएगा वह पाएगा। योग व्यायाम का ऐसा प्रभावशाली प्रकार है, जिसके माध्याम से न केवल शरीर के अंगों बल्कि मन, मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाया जाता है। यही कारण है कि योग से शा‍रीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जा सकती है। योग शब्द की उत्पत्त‍ि संस्कृति के युज से हुई है, जिसका मतलब होता है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन। योग लगभग दस हजार साल से भी अधिक समय से अपनाया जा रहा है। वैदिक संहिताओं के अनुसार तपस्वियों के बारे में प्राचीन काल से ही वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी योग और समाधि को प्रदर्श‍ित करती मूर्तियां प्राप्त हुईं। हिन्दू धर्म में साधु, सन्यासियों व योगियों द्वारा योग सभ्यता को शुरु से ही अपनाया गया था, परंतु आम लोगों में इस विधा का विस्तार हुए अभी ज्यादा समय नहीं बीता है। बावजुद इसके, योग की महिमा और महत्व को जानकर इसे स्वस्थ्य जीवनशैली हेतु बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है, जिसका प्रमुख कारण है व्यस्त, तनावपूर्ण और अस्वस्थ दिनचर्या में इसके सकारात्मक प्रभाव।  

योग की प्रमाणिक पुस्तकों जैसे शिवसंहिता तथा गोरक्षशतक में योग के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है। 1-- मंत्रयोग, जिसके अंतर्गत वाचिक, मानसिक, उपांशु आर अणपा आते हैं। 

2--हठयोग 

3--लययोग

4--राजयोग, जिसके अंतर्गत ज्ञानयोग और कर्मयोग आते हैं। 

व्यापक रूप से पतंजलि औपचारिक योग दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं। पतंजलि के योग, बुद्धि नियंत्रण के लिए एक प्रणाली है, जिसे राजयोग के रूप में जाना जाता है। पतंजलि के अनुसार योग के 8 सूत्र बताए गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं 1 यम---इसके अंतर्गत सत्य बोलना, अहिंसा, लोभ न करना, विषयासक्ति न होना और स्वार्थी न होना शामिल है।

2 नियम-- इसके अंतर्गत पवित्रता, संतुष्ट‍ि, तपस्या, अध्ययन, और ईश्वर को आत्मसमर्पण शामिल हैं।

3 आसन-- इसमें बैठने का आसन महत्वपूर्ण है 

4 प्राणायाम-- सांस को लेना, छोड़ना और स्थगित रखना इसमें अहम है।

5 प्रत्याहार-- बाहरी वस्तुओं से, भावना अंगों से प्रत्याहार। 

6 धारणा-- इसमें एकाग्रता अर्था एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना महत्वपूर्ण है।

7 ध्यान-- ध्यान की वस्तु की प्रकृति का गहन चिंतन इसमें शामिल है।

8 समाधि---इसमें ध्यान की वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना शामिल है। इसके दो प्रकार हैं - सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प में संसार में वापस आने का कोई मार्ग नहीं होता। अत: यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।  भगवद गीता में योग के जो तीन प्रमुख प्रकार बताए गए हैं वे हैं---- 

1 कर्मयोग-- इसमें व्यक्ति अपने स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धापूर्वक निर्वाह करता है।

2 भक्ति योग-- इसमें भगवत कीर्तन प्रमुख है। इसे भावनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है।

ज्ञाना योग--  इसमें ज्ञान प्राप्त करना अर्थात ज्ञानार्जन करना शामिल है।

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