पालि शास्त्रीय भाषा घोषित, पालि विकास बोर्ड के अध्यक्ष का सम्मान
-साँची विवि के कुलगुरु पालि विकास बोर्ड के अध्यक्ष
-पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा संबंधी दस्तावेज तैयार किये।
-साँची विवि में होगा पालि एवं बौद्ध अध्ययन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
अदनान खान सलामतपुर रायसेन। (एडिटर इन चीफ IND28 हर खबर पर पैनी नज़र)
साँची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित होने पर पालि विकास बोर्ड के अध्यक्ष और कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ का सम्मान किया गया। साँची विवि के बौद्ध अध्ययन विभाग ने कुलगुरु का सम्मान करते हुए पालि भाषा के उन्नयन में प्रो वैद्यनाथ लाभ के प्रयासों का उल्लेख किया। इस अवसर पर प्रो. लाभ ने बताया कि भगवान बुद्ध के जन्म के 100 वर्ष पूर्व यानि 700 ईसा पूर्व पालि भाषा विकसित हुई और जनमानस की भाषा बन गई। बुद्ध ने जनसामान्य में पालि की समझ को देखते हुए अपने उपदेश पालि भाषा में दिये। उस वक्त पालि पूर्वी और मध्य भारत में बोली जाने वाली सामान्य भाषा थी। प्रो. लाभ ने बताया कि पालि बौद्ध धर्म के साथ अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रचलित हुई और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में लोकप्रिय तथा समादृत हुई। पालि विकास हेतु अपने योगदान का जिक्र करते हुए प्रो. लाभ ने बताया कि पालि भाषा के विद्वानों ने भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा था जिसमें पालि के शास्त्रीय भाषा संबंधी दावे के दस्तावेज भी भेजे गए थे। पालि भाषा का शब्दकोष बनाने में भी प्रो वैद्यनाथ लाभ ने योगदान दिया है। उन्होने शिक्षा मंत्रालय के केन्द्रीय पालि संस्थान बनाने के विचार का भी समर्थन किया। साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय पालि भाषा में थेरवादी देशों से संपर्क एवं शैक्षिक संबंध स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है. इसी कड़ी में एक अंतरराष्ट्रीय पालि एवं बौद्ध अध्ययन सम्मेलन भी साँची विवि में आयोजित किया जाएगा। साँची विवि में पालि भाषा के ग्रंथों का हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में अनुवाद एवं शोध परियोजना भी शुरु की जा रही है। साँची विवि में पालि भाषा के ऑनलाइन एवं ऑफलाइन अल्पावधि पाठ्यक्रम भी तैयार किये जा रहे हैं।
भारत सरकार ने पालि, पाकृत, मराठी, असमिया और बंगाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या 11 हो गई है, इन भाषाओं का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है और शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इनके संरक्षण, अध्ययन और शोध को बढ़ावा मिलेगा। तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को पूर्व में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जा चुका है।